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२७० छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ९-८, १४. देससंजममहिकिच्च परूविदं, देससंजममेत्तस्स एत्थ अहियारादो । संजमासंजमं पडिवज्जमाणस्स चरिमसमयमिच्छाइट्ठिस्स द्विदिबंधादो सगढिदिसतकम्मं पेक्खिदूण संखेज्जगुणहीणादो संजमाभिमुहमिच्छाइद्विचरिमसमयहिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणहीणं । कुदो ? संजमासंजमफलअपुव्वकरणघादादो संजमफलअपुव्वकरणघादस्स अइबहुत्तादो । संजमासंजमं पडिवज्जमाणमिच्छादिहि-असंजदसम्मादिट्ठीणं डिदिसंतकम्मं अपुन्यकरणचरिमसमए समाणं हि होदि, समाणपरिणामेहि पत्तघादत्तादो । एवं संजमं पडिवज्जमाणमिच्छाइट्ठि-असंजदसम्मादिहि-संजदासंजदाणं पि वत्तव्यं ।
। एदं देसामासियसुतं । कुदो ? एगदेसपदुप्पायणेण एत्थतणसयलत्थस्स सूचयत्तादो । तेणेत्थ ताव संजमासंजम पडिवज्जमाणविहाणं उच्चदे । तं जहापढमसम्मत्तं संजमासंजमं च अक्कमेण पडिवज्जमाणो वि तिण्णि वि करणाणि कुणदि । तेसिं करणाणं लक्खणाणि जधा सम्मत्तुप्पत्तीए परविदाणि तधा परूवेदव्याणि । असंजदसम्मादिट्ठी अट्ठावीससंतकम्मियवेदगसम्मत्तपाओग्गमिच्छादिट्ठी
तथा यह बात प्रथमोपशमसम्यक्त्वसे सहित देशसंयमको अधिकृत करके नहीं कहीं गई है, क्योंकि, यहांपर देशसंयममात्रका अधिकार है। संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले चरमसमयवर्ती मिथ्याष्टिके अपने स्थितिसत्त्वकी अपेक्षा संख्यातगणित हीन स्थितिवन्धसे संयमके अभिमुख मिथ्यादृष्टिका अन्तिम समयसम्बन्धी स्थितिसत्त्व संख्यातगुणित हीन होता है, क्योंकि, संयमासंयमरूप फलवाले अपूर्वकरणके घातसे संयमरूप फलवाला अपूर्वकरणका घात बहुत अधिक होता है । संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्थितिसत्त्व अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें समान ही होता है, क्योंकि, उक्त दोनों जीवोंके स्थितिसत्त्वका घात समान परिणामोके द्वारा प्राप्त हुआ है। इसी प्रकार संयमको प्राप्त होनेवाले मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयतोंके स्थितिसत्त्वकी समानता भी कहना चाहिए।
___ यह देशामर्शक सूत्र है, क्योंकि, एक देशके प्रतिपादन द्वारा यहांपर संभव सकल अर्थोंका सूचक है। इसलिए यहांपर पहले संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले जीवका विधान कहते हैं। वह इस प्रकार है-प्रथमोपशमसम्यक्त्वको और संयमासंयमको एक साथ प्राप्त होनेवाला जीव भी तीनों ही करणोंको करता है। उन करणोंके लक्षण जिस प्रकार सम्यक्त्वकी उत्पत्तिमें प्ररूपित किये हैं, उसी प्रकार यहांपर भी प्ररूपित करना चाहिए। असंयतसम्यग्दृष्टि अथवा मोहनीयकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला
१ प्रतिषु ' अंतोकोडिं ठवेदि ' इति पाठः ।
२ मिच्छो देसचरितं उवसमसम्मेण गिण्हमाणो हु। सम्मत्तुप्पति वा तिकरणचरिमम्हि गेण्हदि है॥ लब्धि. १६८.
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