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१, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए चारित्तपडिवजणविहाणं [२६९ जुगवं पडिवज्जंतस्स दो चेव करणाणि, तत्थ अणियट्टीकरणस्स अभावादों । एदस्स अपुव्यकरणचरिमसमए वट्टमाणमिच्छाइट्ठिस्स द्विदिसंतकम्मं पढमसम्मत्ताभिमुहअणियट्टीकरणचरिमसमयहिदमिच्छाइट्ठिडिदिसंतकम्मादो कधं संखेज्जगुणहीण ? ण, द्विदिसंतमोवट्टियं काऊण संजमासंजमं पडिवज्जमाणस्स संजमासजमचरिममिच्छाइट्ठिस्स तदविरोधादो । तत्थतणअणियट्टीकरणहिदिघादादो वि एत्थतणअपुबकरणहिदिपादस्स बहुवयरत्तादो वा । ण चेदमपुवकरणं पढमसमत्ताभिमुहमिच्छाइटिअपुवकरणेण तुल्लं, सम्मत्तसंजम-संजमासंजमफलाणं तुल्लत्तविरोहा । ण चापुरकरणाणि सव्वअणियट्टीकरणेहितो अणंतगुणहीणाणि त्ति वोत्तुं जुत्तं, तप्पदुप्पायणसुत्ताभावा । एदस्स पक्खस्स कुदो सिद्धी? ' तदो अंतोकोडाकोडिट्ठिदि' हुवेदि' त्ति सुत्तादो । ण चेदं पढमसम्मत्तसहिदयुगपत् प्राप्त होनेवाले जीवके दो ही करण होते हैं, क्योंकि, वहांपर अनिवृत्तिकरण नहीं होता है।
शंका-अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें वर्तमान इस उपर्युक्त मिथ्यादृष्टि जीवका स्थितिसत्व, प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख अनिवृत्तिकरणके अन्तिम समयमें स्थित मिथ्यादृष्टिके स्थितिसत्त्वसे संख्यातगुणित हीन कैसे है ?
समाधान --- नहीं, क्योंकि, स्थितिसत्त्वका अपवर्तन करके संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले संयमासंयमके आभिमुख चरमसमयवर्ती मिथ्यादृष्टिके संख्यातगुणित हीन स्थितिसत्त्वके होनेमें कोई विरोध नहीं है। अथवा वहांके, अर्थात् प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख मिथ्याष्टिके, अनिवृत्तिकरणसे होनेवाले स्थितिघातकी अपेक्षा यहांके, अर्थात् संयमासंयमके अभिमुख मिथ्यादृष्टिके, अपूर्वकरणसे होनेवाला स्थितिघात बहुत अधिक होता है । तथा, यह अपूर्वकरण, प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख मिथ्यादृष्टिके अपूर्वकरणके साथ समान नहीं है, क्योंकि, सम्यक्त्व, संयम और संयमासंयमरूप फलवाले विभिन्न परिणामोंके समानता होनेका विरोध है। तथा, सर्व अपूर्वकरण परिणाम सभी अनिवृत्तिकरण परिणामोंसे अनन्तगुणित हीन होते हैं, ऐसा कहना भी युक्त नहीं है, क्योंकि, इस बातके प्रतिपादन करनेवाले सूत्रका अभाव है।
शंका-इस उपर्युक्त पक्षकी सिद्धि कैसे होती है ?
समाधान-' इस प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख चरमसमयवर्ती मिथ्यादृष्टिके स्थितिबन्ध और स्थितिसत्त्वकी अपेक्षा चारित्रको प्राप्त होनेवाला जीव अन्तःकोडाकोड़ीप्रमाण स्थितिको स्थापित करता है' इस सूत्रसे उपर्युक्त 'संख्यातगुणित हीन स्थितिको स्थापित करता है,' इस पक्षकी सिद्धि होती है।
१ मिच्छो देसचरितं वेदगसम्मेण गेण्हमाणो हु। दुकरणचरिमे गेण्हदि गुणसेढी पत्थि तककरणे ॥
२ करतो' पढमसमयसम्मत्ता' इति पाठः। ३ प्रतिषु हिदिसंतवड्डिय' इति पाठः । ४ अ-कप्रत्योः सम्मत्तसंजमासंजमासंजमफलाणं ' इति पाठः।
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