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________________ १, ९-८, १२.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए खइयसम्मत्तुप्पादणं [२६५ चरिमट्ठिदिखंडओ असंखेज्जगुणो' । मिच्छत्तस्स चरिमट्ठिदिखंडओ विसेसाहिओं । हेट्ठिमपलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तहिदिसंतकम्मेण असंखेज्जगुणहाणिखंडयाणं पढमट्ठिदिखंडओ मिच्छत्त-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमसंखेज्जगुणो । संखेज्जगुणहाणिखंडयाणं चरिमट्ठिदिखंडओ संखेज्जगुणो' । पलिदोवमसंतकम्मादो विदिओ ठिदिखंडओ संखेज्जगुणो । जम्हि ट्ठिदिखंडए अवगए दंसणमोहणीयस्स पलिदोवममेत्तट्ठिदिसंतकम्म होदि सो द्विदिखंडओ संखेज्जगुणो । अपुव्यकरणे पढमो जहण्णओ द्विदिखंडगो संखेज्जगुणों । पलिदोवममेत्ते द्विदिसंतकम्मे जादे तदो पढमो डिदिखंडओ संखेज्जगुणो। पलिदोवमट्ठिदिसंतकम्मं विसेसाहियं । अपुव्वकरणे पढमस्स उक्कस्सट्ठिदिखंडयस्स विसेसो संखेज्जगुणो । दंसणमोहणीयस्स अणियट्टीपढमसमए पविट्ठस्स विदिसंतकम्मं संखेज्ज .................. स्थितिकांडक असंख्यातगुणित है। इससे मिथ्यात्वप्रकृतिका अन्तिम स्थितिकांडक विशेष अधिक है। इससे अधस्तन पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिसत्त्वसे असंख्यात गुणहानिकांडकवाले मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन कर्मोंका प्रथम स्थितिकांडक असंख्यातगुणा है। इससे संख्यात गुणहानि कांडकवाले इन्हीं तीनों कर्मोंका अन्तिम स्थितिकांडक संख्यातगुणित है। इससे पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्त्वकी अपेक्षा इन्हीं तीनों कर्मोंका दूसरा स्थितिकांडक संख्यातगुणित है। इससे जिस स्थितिकांडकके नष्ट होनेपर दर्शनमोहनीयकर्मका पल्योपममात्र स्थितिसत्त्व होता है, वह स्थितिकांडक संख्यातगुणित है। इससे अपूर्वकरणमें होनेवाला प्रथम जघन्य स्थितिकांडक संख्यातगुणित है। इससे पल्योपममात्र स्थितिसत्त्वके होनेपर तत्पश्चात् होनेवाला प्रथम स्थितिकांडक संख्यातगुणित है। इससे पल्योपममात्र स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है। इससे अपूर्वकरणमें होनेवाले प्रथम उत्कृष्ट स्थितिकांडकका विशेष संख्यातगुणित है। इससे अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयमें प्रविष्ट हुए जीवके दर्शन १मिच्छे खविदे सम्मदुगाणं ताणं च मिच्छसंतं हि । पढमंतिमठिदिखंडा असंखगुणिदा हु दुट्ठाणे॥ लब्धि. १५६. ___२ मिच्छतिमठिदिखंडो पल्लासखेज्जभागमेत्तेण । हेछिमठिदिपमाणेणब्भहियो होदि णियमेण ॥ लब्धि. १५७. ३ दूरावकिपिढमं ठिदिखंडं संखसंगुणं तिणं । दूरावकिटिहेदू ठिदिखंडं संखसंगुणियं ॥ लब्धि. १५८. ४ पलिदोवमसंतादो विदियो पल्लस्स हेदुगो जो दु। अवरो अपुवपढमे ठिदिखंडो संखगुणिदकमा ॥ लब्धि. १५९. ५पलिदोवमसंतादो पढमो ठिदिखंडओ दु संखगुणो। पलिदोवमठिदिसंतं होदि विसेसाहियं तत्तो ॥ लब्धि, १६.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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