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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ९-८, १२. चि तुल्लाओ विसेसाहियाओ । कदकरणिज्जस्स अद्धा संखेज्जगुणा । सम्मत्तखवणद्धा संखेज्जगुणा | अणियद्वीअद्धा संखेज्जगुणा । अपुव्वकरणद्धा संखेज्जगुणा । गुणसेडीणिक्खेवो विसेसाहिओ । सम्मत्तस्स दुरिमडिदिखंडओ संखेज्जगुणो । तस्सेव चरिमट्ठेिदिखंडओ संखेज्जगुणो । अट्ठवस्सट्ठिदिसंतकम्मे सेसे जो पढमो द्विदिखंडगो सो संखेज्जगुणो । जहणिया आबाधा संखेज्जगुणा । उक्कस्सिया आबाधा संखेज्जगुणा । अणुभागमणुसमयं ओहट्टमाणस्स पढमसमए अट्ठवासट्ठिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । सम्मत्तस्स चरिमट्ठिदिखंडओ असंखेज्जवस्सिओ असंखेज्जगुणो । सम्मामिच्छत्तस्स चरिमट्टिदिखंडओ विसेसाहिओ । अट्ठवस्समेत्तेण मिच्छत्ते खविदे सम्मत्त - सम्मामिच्छत्ताणं पढमट्ठिदिखंडओ असंखेज्जगुणो । मिच्छत्तसंतकम्मियस्स सम्मत्त - सम्मामिच्छत्ताणं
दोनोंके उत्कृष्ट काल दोनों ही परस्पर तुल्य होते हुए विशेष अधिक हैं। इससे कृतकृत्यवेदकका काल संख्यातगुणित है। इससे सम्यक्त्वप्रकृतिके क्षपणका काल संख्यातगुणित है। इससे अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातगुणित है । इससे अपूर्वकरणका काल संख्यातगुणित है। इससे गुणश्रेणीनिक्षेप विशेष अधिक है । इससे सम्यक्त्वप्रकृतिका द्विचरम स्थितिकांडक संख्यातगुणित है । इससे उसका ही अन्तिम स्थितिकांडक संख्यातगुणित है। इससे सम्यक्त्वप्रकृतिके आठ वर्षप्रमाण स्थितिसत्त्वके शेष रहनेपर जो प्रथम स्थितिकांडक है वह संख्यातगुणित है । इससे जघन्य आवाधा संख्यातगुणित है। इससे उत्कृष्ट आबाधा संख्यातगुणित है। इससे अनुभागको प्रति समय अपवर्तन करनेवाले जीवके प्रथम समय में आठ वर्षप्रमाण स्थितिसत्त्व संख्यातगुणित है । इससे सम्यक्त्वप्रकृतिका असंख्यातवर्षवाला अन्तिम स्थितिकांडक असंख्यातगुणित है। इससे सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिका अन्तिम स्थितिकांडक विशेष अधिक है । इससे आठ वर्षमात्र से मिथ्यात्व के क्षपण करनेपर सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति, इन दोनोंका प्रथम स्थितिकांडक असंख्यातगुणित है । इससे मिथ्यात्वप्रकृतिकी . सत्तावाले जीवके सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति, इन दोनोंका अन्तिम
१ रसठिदिखंडकीरणअद्धा अवरं वरं च अवरवरं । सव्वत्थोत्रं अहियं संखेज्जगुणं विसेस हियं ॥ लब्धि. १५३. २ कदकरणसम्म खवणणियहि अपुत्र संखगुणिदेकमं । तत्तो गुणसेटिस्स य णिक्खेओ साहियो होदि ॥
लब्धि. १५४.
३ प्रतिषु ' दो ' इति पाठः ।
४ क - प्रतौ ' सो चैत्र ' इति पाठः ।
५ सम्म दुचरिमे चरिमे अडवस्सस्सादिमे च ठिदिखंडा । अवरवराजाहात्रि य अडवस्सं संखगुणियकमा ॥
लब्धि. १५५.
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