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१, ९-८, १२.] चुलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए खझ्यसम्मत्तुप्पादणं [२६१ समयओकड्डिददव्वस्स अट्ठवस्सेगट्ठिदिणिसित्तस्स अट्ठवस्सेगट्ठिदिदव्यं णिसेगभागहारेण खंडिदेगखंडमेत्तगोउच्छविसेसादो असंखेज्जगुणस्स अट्ठवस्सेगट्ठिदिपदेसग्गं पेक्खिऊण असंखेज्जगुणहीणत्तादो । एस कमो जाव पढमट्ठिदिखंडयदुचरिमफालि त्ति ।
पुणो चरिमफालीए पदेसग्गे गुणसेडीआगारेण हुइदे वि पुबिल्लगुणसेडीसीसयपदेसग्गादो संपधियगुणसेढीसीसए दिस्समाणपदेसग्गं विसेसाहियं चेव, चरिमफालिदव्वादो अदुवस्सेगहिदपदेसग्गस्स संखेज्जदिभागमेतपदेसाणमागमदंसणादों । एवं णेयव्वं जाव दुचरिमट्ठिदिखंडगो त्ति ।
सम्मत्तस्स चरिमट्ठिदिखंडगे णिट्ठिदे जाओ द्विदीओ सम्मत्तस्स सेसाओ ताओ द्विदीओ थोवाओ। दुचरिमट्ठिदिखंडयं संखेज्जगुणं । चरिमट्ठिदिखंडयं संखेज्जगुणं । सम्मत्तचरिमट्ठिदिमागाएंतो गुणसेडीए संखेज्जे भागे आगाएदि, अण्णाओ च उवरि संखेज्जगुणाओ हिदीओ । सम्मत्तस्स चरिमट्ठिदिखंडगे पढमसमयआगाइदे ओवट्टिय
क्योंकि, आठ वर्षरूप एक स्थितिद्रव्यको निषेकभागहारसे खंडित कर एक खंडमात्र गोपुच्छविशेषसे असंख्यातगुणित तथा दूसरे समयमें अपकर्षण किया गया और आठ वर्षप्रमाण एक स्थिति निषिक्त द्रव्य, आठ वर्षरूप एक स्थितिके प्रदेशाग्रको देखकर, अर्थात् उसकी अपेक्षा, असंख्यातगुणित हीन होता है । यह क्रम प्रथम स्थितिकांडककी द्विचरमफाली तक ले जाना चाहिए।
पुनः अन्तिम फालीके प्रदेशाग्रको गुणश्रेणीके आकारसे स्थापित करने पर भी पहलेकी गुणश्रेणीके शीर्षसम्बन्धी प्रदेशाग्रसे इस समय गुणश्रेणीके दृश्यमान प्रदेशाग्र विशेष अधिक ही हैं, क्योंकि, अन्तिम फालीके द्रव्यसे आठ वर्षरूप एक स्थितिसम्बन्धी प्रदेशाग्रके संख्यातवें भागमात्र प्रदेशोंका आना देखा जाता है। इस प्रकार यह क्रम द्विचरम स्थितिकांडक तक ले जाना चाहिए।
सम्यक्त्वप्रकतिके अन्तिम स्थितिकांडकके समाप्त होने पर जो स्थितियां सम्यक्त्वप्रकृतिकी शेष बची हैं, वे स्थितियां अल्प हैं। उनसे विचरम स्थितिकांडक संख्यातगुणित है । उससे अन्तिम स्थितिकांडक संख्यातगुणित है। सम्यक्त्वप्रकृतिकी अन्तिम स्थितिको ग्रहण करता हुआ गुणश्रेणीके संख्यात भागोंको ग्रहण करता है, तथा इसके ऊपर संख्यातगुणित अन्य भी स्थितियोंको ग्रहण करता है। सम्यक्त्वप्रकृतिके अन्तिम स्थितिकांडकके प्रथम समयमें ग्रहण करनेपर अपवर्तन की गई स्थितियों से जो
१ प्रतिषु · विसोहियं ' इति पाठः ।
२ अडवस्से य ठिदीदो चरिमेदरफालिपडिददव्वं खु। संखासख गुणूणं तेणुवरिमदिस्समाणमहियं सीसे ॥ लब्धि. १३६.
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