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१, ९-८ १२.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए खइयसम्मत्तुप्पादणं [२५२ चरिमट्ठिदिखंडओ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागिगो त्ति एदम्हि काले जे पदेसग्गं ओकड्डमाणो उदयावलियबाहिरसव्वरहस्सहिदीए देदि तं थोवं । समउत्तराए द्विदीए जं पदेसग्गं देदि तमसंखेज्जगुणं । दुसमउत्तराए हिदीए पदेसग्गमसंखेज्जगुणं देदि । एवं जाव गुणसेडीसीसयं ताव असंखेज्जगुणं । तदो गुणसेडीसीसयादो उवरिमाणंतराए द्विदीए पदेसग्गमसंखेज्जगुणहीणं देदि । तत्तो उवरि सव्वत्थ विसेसहीणं चेव देदि । जावे' अहवासियविदिसतकम्मं चेट्टिदं तदोप्पहुडि उवरि अंतोमुहुत्तिगं द्विदिखंडयमागाएदि । सम्मत्तअणुभार्गस्स उदयावलियपविसमाणअणुभागस्स उदयावलियबाहिरअणुभागस्स य अणुसमयओवट्टणमणंतगुणहीणाए सेडीए करेदि । पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागियं चरिमट्टिदिखंडयचरिमफालिपदेसग्गमट्टवस्सम्मि णिक्खिवमाणो उदयादिअवद्विदगुणसेडिं करेदि । तं जहा
वाले अन्तिम स्थितिकांडक तक इस कालमें जिस प्रदेशाग्रका अपकर्षण करता हुआ उदयावलीसे बाहिरी और सबसे ह्रस्व स्थिति देता है, वह अल्प है। इससे एक समय अधिक स्थितिमें जिस प्रदेशाग्रको देता है वह असंख्यातगुणित है। इससे दो समय अधिक स्थितिमें असंख्यातगुणित प्रदेशाग्रको देता है। इस प्रकार गुणश्रेणीशीर्ष तक असंख्यातगुणित प्रदेशाग्रको देता है। तत्पश्चात् गुणश्रेणीशीर्षसे उपरिम अनन्तर स्थितिमें असंख्यातगुणितहीन प्रदेशाग्रको देता है। इससे ऊपर सर्वत्र, अर्थात् शेष समस्त स्थितियोंमें, विशेषहीन विशेषहीन ही प्रदेशाग्रको देता है। जिस समय सम्यक्त्वप्रकृतिका स्थितिसत्त्व आठ वर्षप्रमाण किया गया, उस समयसे लेकर ऊपर अन्तर्मुहूर्तप्रमाणवाले स्थितिकांडकको ग्रहण करता है। सम्यक्त्वप्रकृतिसम्बन्धी उदयावलीमें प्रविश्यमान अनुभागकी और उदयावलीसे बाह्य अनुभागकी प्रतिसमय अपवर्तना अनन्तगुणित हीन श्रेणीके द्वारा करता है। पल्योपमके असंख्यातवें भागवाले अन्तिम स्थितिकांडककी अन्तिम फालिके प्रदेशाग्रको सम्यक्त्वप्रकृतिके आठ वर्षमात्र स्थितिसत्त्वके ऊपर निक्षिप्त करता हुआ उदयादिअवस्थित गुणश्रेणीको करता है । वह इस प्रकार है
समये पल्लासंखेज्जभागगे खंडे । चरिमे पडिदे चेट्ठदि सम्मस्सडवस्सठिदिसंतो ॥ मिच्छस्स चरमफालि भिस्से मिस्सस्स चरिमफालिं तु । संहदि हु सम्मत्ते ताहे तेर्सि च वरदव्वं ॥ जदि होदि गुणिदकम्मो दब्वमणुक्कस्समण्णहा तेसिं । अवरठिदी मिच्छदुगे उच्छितु समयदुगसेसे ॥ लब्धि. १२४-१२७. १ क-प्रती जाधे' इति पाठः।
२ आ-प्रतौ 'सम्मत्तमणुभागस्स' इति पाठः। ३ अ-कप्रत्योः 'उदय-उदयादलिय' इति पाठः। ४ अ-कप्रत्योः '-आवविदगुणसेडि' इति पाठः।
५ मिस्सदुगमरिमफाली किंचूण यपबद्धपमा । गुणसेटिं करिय तदो असंखभागेण पुवं व ॥ सेसे विसेसहीणं अडवस्सुवरिमठिदीए संखुद्धे। चरिमाउलिं व सरिसी रयणा संजायदे एत्तो ॥ अडवस्सादो उवरि उदयादिअवहिदं च गुणसेदी। अंतोमुहुत्तियं ठिदिखंडं च य होदि समस्स ॥ विदियावलिस्स पढमे पढमस्ते च आदिमणिसेये । तिहाणेणंत गुणे]णकमोवट्टणं चरमे ॥ लब्धि. १२८-१३१.
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