________________
२५६ ]
खंडागमे जीवाणं
[ १, ९-८, १२.
होदि' । तदो सेसस्स असंखेज्जे भागे आगाएदि । एतो पहुडि सेसस्स असंखेज्जे भागे चेव आगाएदि जाव सम्मत्तट्ठिदिसंतकम्मं संखेज्जदिवाससहरूसमेत्तं ण पत्तं ति ।
एवं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागिगेसु ट्ठिदिखंडएस गदेसु तदो सम्मत्तस्स असंखेज्जाणं समयपबद्धाणमुदीरणा । तदो बहुसुट्ठिदिखंडएस गदेसु मिच्छत्तमावलियबाहिरं सव्वमागाइदं । सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागं मोत्तूण असंखेज्जा भागा आगाइदा | तम्हि ट्ठिदिखंडए णिट्टिज्जमाणे णिट्टिदे मिच्छत्तस्स जहणो दिट्ठसंकमो । जदि गुणिदकम्मंसिओं तो उक्कस्सओ पदेससंकमो, अण्णहा
बहु भागों को स्थितिकांडकरूपसे ग्रहण करता है। इससे आगे दर्शनमोहनीयकर्मके शेष स्थितिसत्त्वके असंख्यात बहु भागोंको ही तब उक स्थितिकांडकरूपसे ग्रहण करता है जब तक कि सम्यक्त्वप्रकृतिका स्थितिसत्त्व असंख्यात हजार वर्षमात्र नहीं प्राप्त होता है ।
इस प्रकार पल्योपमके असंख्यातवें भागवाले स्थितिकांडकोंके व्यतीत होनेपर उसके पश्चात् सम्यक्त्वप्रकृति के असंख्यात समयप्रबद्धोंकी उदीरणा प्रारम्भ होती है । पुनः बहुतसे स्थितिकांडकोंके व्यतीत हो जानेपर उदद्यावलीसे बाहिर स्थित सर्व मिथ्यात्वको घात करनेके लिए ग्रहण किया । तथा, सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यमिध्यात्वप्रकृति, इन दोनोंके पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिसत्त्वको छोड़कर शेष असंख्यात बहुभाग ग्रहण किए। समाप्त होने योग्य उस स्थितिकांडक के समाप्त होनेपर मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसंक्रमण होता है । यदि वह जीव गुणितकर्माशिक है, तो उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमण होता है, अन्यथा अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमण होता है । उसी
पलिदोवमट्ठिदिसंतक्रम्मादो सट्टु दूरयरमोसारिय सव्त्रजहण्णपलिदोषमसंखेज्जभागसरूत्रेणावद्वाणादो । पल्य पमस्थितिकर्मणोऽधस्ताद्दरतरमपकृष्टत्वादतिकृशत्वाच्च दूरापकृष्टिरेषा स्थितिरित्युक्तं भवति । अथवा दूरतरमपकृष्टा तस्याः स्थितिकांडकमिति दूरापकृष्टिः । इतः प्रभृत्यसंख्येयान् भागान् गृहीत्वा स्थितिकांडकघातमाचरतीत्यतो दूरापकृष्टिरिति यावत् । जयध. अ. प. ९७१.
१ पट्टिदिदो उवरिं संखेज्ज सहरसमेत ठिदिखंडे । दूरावकिट्टिसण्णिदठिदिसतं होदि नियमेण ॥ लब्धि. १२०.
२ अ-आप्रत्योः ' भागिदेसु ', कप्रतौ ' भागेदेषु ' इति पाठः ।
३ पलस्स संखभागं तस्स पमाणं तदो असंखेज्ज । भागपमाणे खंडे संखेज्जसहस्सगेसु तीदेसु ॥ सम्मस्स असंखाणं समयपत्रद्वाणुदीरणा होदि । तत्तो उवरिं तु पुणो बहुखंडे मिच्छउच्छिष्टं ॥ जत्थ असंखेचाणं समयपबद्धाणुदीरणा तत्तो । पल्हासंखेज्जदिमो हारेणासंखलोगमिदो ॥ लब्धि. १२१-१२३.
४ जो बायरतसकालेणूणं कम्मट्टिईं तु पुढवीए । बायर (रि) पञ्जत्तापञ्जत्तगदहियरद्वासु ॥ ७४ ॥ जोगक्साउकोसो बहुसो निच्चमवि आउबंधं च । जोगजहण्णेणुवरिल ठिइणिसेगं बहु किच्चा ॥ ७५ ॥ बायर से सु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org