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चूलियाए सम्मत्तप्पत्तीए खइयसम्मत्तुष्पादणं
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१, ९-८, १२. ] वमस्स संखेज्जदिभागेण ऊणियं द्विदिं बंधदि । एदस्स करणस्स पढमडिदिबंधादो चरिमविधि संखेज्जगुणहीणो ।
अपुत्रकरण पढमसम पुव्वट्ठिदिबंधादो पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागेणूणो अण्णो दिबंध होदि । तहि चैत्र समए पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागमेत्तायामं सागरोवमपुधत्तायामं वा आउगवज्जाणं कम्माणं ठिदिखंडयमाढवेदि । अप्पसत्थाणं कम्माणं अणुभागस्स अणता भागमेत्तमणुभागखंडयं च तत्थेव आढवेदि । तत्थेव अणताणुबंधीणं गुणसंकर्म आदि । तं जधा - पढमसमए पुत्रं संकामिददव्वादो असंखेज्जगुणं संक्रामेदि । विदियसमए तत्तो असंखेज्जगुणं संकामेदि । एवं दव्वं जाव सव्वसंकमपढमसमओ त्ति । उदयावलियबाहिरडिदिट्ठिद पदेसग्ग मोकड्डुणभागहारेण खंडिदेयखंड तूण उदयावलियबाहिरे आयुगवज्जाणं कम्माणं गलिदसेसं गुणसेडिं करेदि जाव अपुत्र अणियडी अद्धा हिंतो विसेसाहियमाणं गच्छदि ति । तदो उवरिमाणंतराए हिदी
अपेक्षा पल्योपमके संख्यातवें भागसे हीन स्थितिको बांधता है । इस अधःप्रवृत्तकरणके प्रथम समय में होनेवाले स्थितिबन्धसे अन्तिम समयमें होनेवाला स्थितिबन्ध संख्यातगुणा हीन होता है।
अपूर्वकरणके प्रथम समय में पूर्व स्थितिबन्धसे पल्योपमके संख्यातवें भागसे हीन अन्य स्थितिबन्ध होता है । उसी समय में आयुकर्मको छोड़कर शेष कर्मों के पल्योपमके संख्यातवें भागमात्र आयामवाले अथवा सागरोपमपृथक्त्व आयामवाले स्थितिकांडकको आरम्भ करता है। तथा उसी समय में अप्रशस्त कर्मोंके अनुभाग के अनन्त बहुभागमात्र अनुभागकांडकको आरम्भ करता है । उसी समय में अनन्तानुबन्धी कषायका गुणसंक्रमण भी आरम्भ करता है । वह इस प्रकार है- प्रथम समय में पहले संक्रमण किए गये द्रव्यसे असंख्यातगुणित प्रदेशका संक्रमण करता है । दूसरे समय में उससे असंख्यातगुणित प्रदेशका संक्रमण करता है । इस प्रकार यह क्रम सर्वसंक्रमण होनेके प्रथम समय तक ले जाना चाहिए। उदयावलीसे बाहिरकी स्थिति में स्थित प्रदेशाग्रको अपकर्षणभागहारसे खंडित कर उसमेंसे एक खंडको ग्रहणकर उदयावलीसे बाहिर आयुकर्मको छोड़कर शेष कर्मोंकी गलितशेष गुणश्रेणीको तब तक करता है जब तक कि अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालोंसे विशेष अधिक काल व्यतीत होता है। इससे उपरिम अनन्तर स्थितिमें असंख्यातगुणित हीन प्रदेशाको देता है । इससे
१ अहाणं पयडीणं अनंतभागा रसस्स खंडाणि । सुहपयडीणं नियमा पस्थित्ति रसस्स खंडाणि ॥ २ प्रतिषु ' हि ' इति पाठः ।
लब्धि. ८०.
३ गुणसेढीदीहत्तमपुब्वदुगादो दु साहियं होदि । गलिदवसे से उदयावलिबाहिरदो दु णिखेवो ॥ लब्धि. ५५. उक्कट्ठिदम्हि देदि हु असंखसमयप्पबंधमादिम्हि । संखातीदगुणक्कममसंखहीणं विसेसहीणक्रमं || पडिसमयं उदि असंखगुणिय कमेण संचदि य । इदि गुणसेटीकरणं आउगवज्जाण कम्माणं ॥ लब्धि. ७३-७४.
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