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________________ १, ९-८, ७.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए पढमसम्मत्तुप्पादणं [२३७ सीसयं संखेज्जगुणं । पढमहिदी संखेज्जगुणा । उवसामगद्धा' विसेसाहिया । विसेसो पुण वे आवलियाओ समऊणाओ । अणियट्टिअद्धा संखेज्जगुणा ! अपुव्वद्धा संखेज्जगुणा । गुणसेडीणिक्खेवो विसेसाहिओ। उवसंतद्धा संखेज्जगुणा । अंतरं संखेज्जगुणं । जहणियाबाधा संखेज्जगुणा । उक्कस्सिया आवाधा संखेज्जगुणा । अपुव्यकरणस्स पढमसमए जहण्णओ हिदिखंडओ असंखेज्जगुणो। उक्कस्सओ द्विदिखंडओ संखेज्जगुणो। जहण्णगो द्विदिवंधो संखेज्जगुणो । उक्कस्सओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । जहण्णयं द्विदिसंतकम्म संखेज्जगुणं । उक्कस्सयं संखेज्जगुणं । गुणश्रेणीशीर्ष संख्यातगुणा है (१०)। इससे प्रथमस्थिति संख्यातगुणी है (११)। इससे उपशामकाद्धा, अर्थात् दर्शनमोहके उपशमानेका काल, विशेष अधिक है (१२) । वह विशेष एक समय कम दो आवलीमात्र है । इससे अनिवृत्तिकरणका काल संख्यातगुणा है (१३)। इससे अपर्वकरणका काल संख्यातगुणा है (१४) । इससे गुणश्रेणीका निक्षेप, अर्थात आयाम, विशेष अधिक है (१५)। इससे उपशान्ताद्धा, अर्थात उपशमसम्यक्त्वका काल, संख्यातगुणा है (१६)। इससे अन्तर, अर्थात् अन्तरसम्बन्धी आयाम, संख्यातगुणा है (१७)। इससे जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है (१८)। उत्कृष्ट आबाधा संख्यातगुणी है (१९)। इससे अपूर्वकरणके प्रथम समयमें जो जघन्य स्थितिखंड है, वह असंख्यातगुणा है (२०)। इससे ( अपूर्वकरणके प्रथम समयमें जो) उत्कृष्ट स्थितिखंड है, वह संख्यातगुणा है (२१)। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिबंन्ध संख्यातगुणा है (२२)। इससे अपूर्वकरणके प्रथम समयमें संभव उत्कृष्ट स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है (२३)। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है (२४)। इससे मिथ्यात्वका उत्कट स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है (२५)। विशेषार्थ-उपर्युक अल्पबहुत्वमें पांचवें और छठवें स्थानके साथ ही स्थिति १ का उवसामणद्धा णाम? जम्हि अद्धाविसेसे दसणमोहणीयमुवसंतावणं होदूण चिट्ठइ सा उत्रसामणद्धा त्ति भण्णदे, उसमसम्माइद्विकालो त्ति भगिदं होइ । जयध. अ. प. ९४६. २ तत्तो पढमो अहिओ पूरणगुणसे दिसेसपटमठिदी। संखण य गुणियकमा उवसमगद्धा त्रिसेसहिया ॥ लब्धि. ९४. ३ जम्मि काले मिच्छत्तमुवसंतभावेणच्छदि सो उवसमसम्मत्तकालो उवसंतद्धा त्ति भण्णदे । जयध. अ.प. ९५६. ४ एसा जहण्णाबाहा कत्थ गहेयव्वा ? मिच्छत्तस्स ताव चरिमसमयमिच्छादिहिणा णवकबंधविसए गहेयव्वा । तत्तो अण्णत्थ मिच्छत्तस्स सवजहण्णाबाहाणुवलंभादो। सेसकम्माणं पुण गुणसंकमचरिमसमयणवकबंध. जहण्णाबाहा घेत्तवा । जयध. अ. प. ९५६. ५ अणियट्टियसंखगुणे णियाट्टिए सेढियायद सिद्धं । उवसंतद्धा अंतर अवरावरबाह संखगुणिदकमा ॥ लब्धि. ९५. ६ पढमापुव्वजहणं ठिदिखंडमसंखमं गुणं तस्स । वरमवरहिदिसता एदे य संखगुणियकमा॥ लब्धि.९६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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