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________________ २३८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-८, ८. दंसणमोहणीयं कम्मं उवसामेदि॥ ८॥ एदेण पुवुत्तपयारेण दंसणमोहणीयं उवसामेदि ति पुव्वुत्तत्थो चेव एदेण सुत्तेण संभालिदो। उवसामेंतो कम्हि उवसामेदि, चदुसु वि गदीसु उवसामेदि । चदुसु वि गदीसु उवसातो पंचिंदिएसु उवसामेदि, णो एइंदियविगलिंदियेसु । पंचिंदिएसु उवसामेंतो सण्णीसु उवसामेदि, णो असण्णीसु । सण्णीसु उवसातो गम्भोवक्कंतिएसु उवसामेदि, णो सम्मुच्छिमेसु । गम्भोवक्कंतिएसु उवसातो पज्जत्तएसु उवसामेदि, णो अपज्जत्तएसु । पज्जत्तएसु उवसातो संखेज्जवस्साउगेसु वि उवसामेदि, असंखेज्जवस्साउगेसु वि ॥ ९॥ __ सुगममेदं । एत्थुवउज्जतीओ गाहाओकांडकउत्कीरणकालका भी निर्देश किया गया है। किन्तु लब्धिसारमें यहां स्थितिकांडकउत्कीरणकालका उल्लेख नहीं है। और उसके न होने पर ही पच्चीस स्थान ठीक बैठते हैं । अतएव उक्त पाठका विषय विचारणीय है। मिथ्यात्वके तीन भाग करनेके पश्चात् दर्शनमोहनीय कर्मको उपशमाता है ॥ ८॥ इस पूर्वोक्त प्रकारसे दर्शनमोहनीयको उपशमाता है, इस प्रकार पहले कहा गया अर्थ ही इस सूत्रके द्वारा स्मरण कराया गया है। दर्शनमोहनीय कर्मको उपशमाता हुआ यह जीव कहां उपशमाता है ? चारों ही गतियोंमें उपशमाता है । चारों ही गतियोंमें उपशमाता हुआ पंचेन्द्रियोंमें उपशमाता है, एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियोंमें नहीं उपशमाता है । पंचेन्द्रियोंमें उपशमाता हुआ संज्ञियोंमें उपशमाता है, असंज्ञियोंमें नहीं । संज्ञियोंमें उपशमाता हुआ गर्भोपक्रान्तिकोंमें, अर्थात् गर्भज जीवोंमें, उपशमाता है, सम्मूछिमोंमें नहीं । गर्भोपक्रान्तिकोंमें उपशमाता हुआ पर्याप्तकोंमें उपशमाता है, अपर्याप्तकोंमें नहीं । पर्याप्तकोंमें उपशमाता हुआ संख्यात वर्षकी आयुवाले जीवोंमें भी उपशमाता है और असंख्यात वर्षकी आयुवाले जीवोंमें भी उपशमाता है ॥९॥ यह सूत्र सुगम है । इस विषयमें ये निम्न गाथाएं उपयोगी हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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