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१, ९-८, ४. चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए अणियट्टीकरणं
[२२१ एदेसिं करणाणं तिव्य-मंददाए अप्पाबहुगं उच्चदे । तं जधा- अपुधकरणस्स पढमसमयजहण्णविसोही थोवा । तत्थेव उक्कस्सिया विसोही अणंतगुणा । बिदियसमयजहणिया विसोही अणंतगुणा । तत्थेव उक्कस्सिया विसोही अणंतगुणा । तदियसमयजहण्णिगा विसोही अणंतगुणा । तत्थेव उक्कस्सिया विसोही अणंतगुणा । एवं णेयव्वं जाव अपुवकरणचरिमसमओ त्ति । करणं परिणामो, अपुव्वाणि च ताणि करणाणि च अपुब्धकरणाणि, असमाणपरिणामा त्ति जं उत्तं होदि । एवमपुवकरणस्स लक्खणं परूविदं ।
इदाणिमणियट्टीकरणस्स लक्खणं उच्चदे । तं जधा- अणियष्टीकरणद्धा अंतोमुहुत्तमेसा होदि त्ति तिस्से अद्धाए समया रचेदव्या । एत्थ समयं पडि एक्केक्को चेव परिणामो होदि, एक्कम्हि समए जहण्णुक्कस्सपरिणामभेदाभावा ।।
एदासिं विसोहीणं तिव्व-मंददाए अप्पाबहुगं उच्चदे- पढमसमयविसोही थोवा ।
इन करणोंकी, अर्थात् अपूर्वकरणकालके विभिन्न समयवर्ती परिणामोंकी, तीवमन्दताका अल्पबहुत्व कहते हैं। वह इस प्रकार है- अपूर्वकरणकी प्रथम समयसम्बन्धी जघन्य विशुद्धि सबसे कम है। वहांपर ही उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणित है । प्रथम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे द्वितीय समयकी जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणित है। वहां पर ही उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणित है। द्वितीय समयकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे तृतीय समयकी जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणित है। वहांपर ही उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणित है । इस प्रकार यह क्रम अपूर्वकरणके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिए । करण नाम परिणामका है। अपूर्व जो करण होते हैं उन्हें अपूर्वकरण कहते हैं, जिनका कि अर्थ असमान परिणाम कहा गया है । इस प्रकार अपूर्वकरणका लक्षण निरूपण किया।
अब अनिवृत्तिकरणका लक्षण कहते हैं । वह इस प्रकार है- अनिवृत्तिकरणका काल अन्तर्मुहूर्तमात्र होता है, इसलिए उसके कालके समयोंकी रचना करना चाहिए । यहांपर, अर्थात् अनिवृत्तिकरणमें, एक एक समयके प्रति एक एक ही परिणाम होता है, क्योंकि, यहां एक समयमें जघन्य और उत्कृष्ट परिणामोंके भेदका अभाव है।
अब अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी विशुद्धियोंकी तीव्र-मन्दताका अल्पबहुत्व कहते हैं-प्रथम समयसम्बन्धी विशुद्धि सबसे कम है। उससे द्वितीय समयकी विशुद्धि
१ समए समए मिण्णा भावा तम्हा अपुवकरणो हु । लब्धि. ३६. जम्हा उवरिममावा हेट्ठिमभावेहिं पत्थि सरिसत्तं । तम्हा विदियं करणं अपुवकरणेत्ति णिढि॥ लब्धि. ५१.
२ अणियही वि तह वि य पडिसमयं एकपरिणामो॥ लब्धि ३६. होति अणियहिणो ते पडिसमय जेस्सिमेकपरिणामा। गो. जी. ५७.
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