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________________ २१८ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-८, ४. कधमेदं णव्यदे ? अंतदीवयअधापवत्तणामादो । एदासिं विसोहीणं तिव्व-मंददाए अप्पाबहुगं उच्चदे- पढमसमयजहणिया विसोही थोवा । विदियसमयजहणिया विसोही अणंतगुणा । तदियसमयजहणिया विसोही अणंतगुणा । एवं णेयव्वं जाव अंतोमुहुत्तमेत्तणिव्यग्गणकंडयचरिमसमयजहण्णविसोहि ति । तत्तो णियत्तिदृण पढमसमयउक्कस्सिया विसोही तदो अणंतगुणा । पुत्रपरूविदजहष्णविसोहीदो उपरिमसमयजहण्ण विसोही अणंतगुणा । तदो विदियसमयउक्कस्सिया विसोही अणंतगुणा। तदो पुवुत्तजहणविसोहीदो उवरिमसमयजहण्णविसोही अणंतगुणा । तदो तदियसमयउक्कस्सिया विसोही अणंतगुणा । इदरत्थ जहणिया विसोही अणंतगुणा । तदो इदरस्थ उक्कस्सिया विसोही अणंतगुणा । एदेण कमेण णेयव्वं जाव अधापवत्तकरणस्स चरिमसमयजहण्णविसोहि ति । तत्तो णिव्वग्गणकंडयमेत्तं ओसरिदृण द्विदहेद्विमसमयस्स उक्कस्सिया विसोही अणंतगुणा । तदो उवरिमसमये उक्कस्सिया विसोही अणंतगुणा । एवमुक्कस्सियाओ चेव विसोहीओ णिरंतर अणंतगुण शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-क्योंकि, अधःप्रवृत्त यह नाम अन्तदीपक है, इसलिए प्रथमोपशमसम्यक्त्व होनेके पूर्व तक मिथ्यादृष्टि आदिके पूर्वोत्तर समयवर्ती परिणामोंमें जो सदृशता पाई जाती है, उसकी अधःप्रवृत्त संज्ञाका सूचक है । अब इन अधःप्रवृत्तलक्षणवाली विशुद्धियोंकी तीव्र-मन्दताका अल्पबहुत्व कहते हैं- प्रथम समयकी जघन्य विशुद्धि सबसे कम है। उससे द्वितीय समयकी जपन्य विशुद्धि अनन्तगुणित है। उससे तृतीय समयकी जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणित है। इस प्रकार यह क्रम अन्तर्मुहूर्तमात्र निर्वगणाकांडकके अन्तिम समयसम्बन्धी जघन्य विशुद्धि तक ले जाना चाहिए । वहांसे लौटकर प्रथम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धि उससे अनन्तगुणित है। पूर्व प्ररूपित, अर्थात् प्रथम निर्वर्गणाकांडकके अन्तिम समयसम्बन्धी, जघन्य विशुद्धिसे उपरिम समयकी, अर्थात् द्वितीय निर्वगणाकांडकके प्रथम समयकी, जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणित है । उससे दूसरे समयकी उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणित है । पुनः पूर्वोक्त जघन्य विशुद्धिसे उपरिम समयकी जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणित है। उससे तीसरे समयकी उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणित है । पुनः पूर्वोक्त जघन्य विशुद्धिसे उपरिम समयकी जघन्य विशुद्धि अनन्तगुणित है। उससे चौथे समयकी उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणित है । इस क्रमसे यह अल्पबहुत्व अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयसम्बन्धी जघन्य विशुद्धि प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए। उससे निर्वर्गणाकांडकमात्र दूर जाकर स्थित अधस्तन समयकी उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणित है। उससे उपरिम समयकी उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुणित है। इसी प्रकार उत्कृष्ट ही विशुद्धियोंको निरन्तर अनन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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