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________________ १, ९-८, ४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए अधापवत्तकरणं [२१५ समयपाओग्गपरिणामा विसेसाहिया। विसेसो पुण अंतोमुहुत्तपडिभागिओ' । विदियसमयपरिणामेहिंतो तदियसमयपरिणामा विसेसाहिया । एवं णेयव्वं जाव अधापवत्त- . करणद्धाए चरिमसमओ त्ति । एदिस्से अद्धाएं संखेज्जदिभागो णिव्वग्गणकंडयं णाम। तम्हि णिव्वग्गणकंडए जेत्तिया समया तेत्तियमेतं खंडाणि सव्वसमयपरिणामपंत्तीओ कादव्याओ । तत्थ सव्वसमयपरिणामपंतीसु पढमखंडं थोवं । विदियखंडं विसेसाहियं । तत्तो तदियखंडयं विसेसाहियं । एवं णेयव्यं जाव चरिमखंडं ति । एक्केक्कस्स आयामो असंखेज्जा लोगा । एत्थतणविसेसो अंतोमु हुत्तपडिभागिओं', तेण एसो वि असंखेजलोगमेत्तो चेव । प्रथम समयसम्बन्धी परिणामोंसे द्वितीय समयके योग्य परिणाम विशेष अधिक होते हैं। वह विशेष अन्तर्महर्त-प्रतिभागी है, अर्थात प्रथम समयसम्बन्धी परिणामोंके प्रमाणमें अन्तर्मुहूर्तका भाग देनेपर जितना प्रमाण आता है, उतने प्रमाणसे अधिक हैं। अधःप्रवृत्तकरणके द्वितीय समयसम्बन्धी परिणामोंसे तृतीय समयके परिणाम विशेष अधिक होते हैं । इस प्रकार यह क्रम अधःप्रवृत्तकरणकालके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिए। इस अधःप्रवृत्तकरणकालके संख्यातवें भागमात्र निर्वर्गणाकांडक होता है। ( वर्गणा नाम समयोंकी समानताका है । उस समानतासे रहित उपरितन समयवर्ती परिणामोंके खंडोंके कांडक या पर्वको निर्वर्गणाकांडक कहते हैं ।) उस निर्वर्गणाकांडकमें जितने समय होते हैं, उतने मात्र खंड सर्व समयवर्ती परिणामोंकी पंक्तियोंके करना चाहिए। उन सर्व समयसम्बन्धी परिणामोंकी पंक्तियों में प्रथम खंड सबसे कम है। द्वितीय खंड विशेष अधिक है। उससे तृतीय खंड विशेष अधिक है। इस प्रकार यह क्रम अन्तिम खंड तक ले जाना चाहिए। एक एक खंडके परिणामोका आयाम असंख्यात लोकप्रमाण है। इन खंडोमें जो विशेष प्रमाण अधिक है, वह अन्तर्महर्त-प्रतिभागी है, इसलिए यह विशेष भी असंख्यात लोकमात्र ही है। १ आदिमकरणद्धाए पडिसमयमसंखलोगपरिणामा। अहियकमा हु विसेसे मुहुत्तअंतो हु पडिभागो॥ लब्धि . ४२. . २ अ-आ प्रत्योः ‘पडिसे अद्धाए' क प्रतौ 'पडिसेहद्धाए' इति पाठः । ३ पढमसमयअधापवत्तकरणस्स जाणि परिणामट्ठाणाणि ताणि अंतोमुहुत्तस्स जत्तिया समया तत्तियमेनाणि खंडाणि कायवाणि । किं पमाणमेदमंतोमहुत्तमिदि पुच्छिदे सगद्धाए संखेज्जदिमागमे । तमेव णिव्वग्गणकंडयमिदि एत्थ घेतव्वं । विवक्खियसमयपरिणामाणं जत्तो परमणुकडिवोच्छेदो तं णिवम्गणकंडयमिदि भण्णदे । जयध. अ. प. ९४६. ताए अधापवत्तद्वाए संखेज्जमागमेत्तं तु । अणुकट्ठीए अद्धा णिव्वग्गणकंडयं तं तु ॥ वर्गणा समयसादृश्यं । ततो निष्क्रान्सा उपर्युपरि समयवर्तिपरिणामखंडा तेषां कांडकं पर्व निर्वर्गणकांडकं ॥ लब्धि. टी. ४३. ४ पडिसमयगपरिणामा णिव्वग्गणसमयमेत्तखंडकमा । अहियकमा हु विसेसे मुहत्ततो हु पडिभागो॥ पडिखडगपरिणामा पत्न्यमसंखलोगमेत्ता हु । लोयाणमसंखेज्जा छट्ठाणाणि विसेसे वि॥ लब्धि. ४४-४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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