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१, ९-८, ४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए अधापवत्तकरणं
[२११ सादासादाणमण्णदरस्स वेदगो। मोहणीयस्स दसहं णवण्हमढण्हं वा वेदगो । काओ दस पयडीओ ? मिच्छत्तं अणंताणुबंधिचदुक्काणमेक्कदरं अपच्चक्खाणावरणचदुक्काणमेक्कदरं पच्चक्खाणावरणचदुक्काणमेक्कदरं संजलणचदुक्काणमेक्कदरं तिण्हं वेदाणमेक्कदरं हस्सरदि-अरदिसोग-दोजुगलाणमेक्कदरं भय-दुगुंछा चेदि । काओ णव पयडीओ ? भयदुगुंछासु अण्णदरुदएण विणा । भय-दुगुंछाणमुदएण विणा अट्ट हवंति। चदुण्हमाउगाणमण्णदरस्स वेदगो।
जदि णेरइओ, णिरयगदि-पंचिंदियजादि-वेउब्धिय-तेजा-कम्मइयसरीर-इंडसंठाणवेउधियसरीरअंगोवंग-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-उवघाद-परघाद-उस्सास-अप्प
असातावेदनीय, इन दोनों से किसी एकका वेदक हो। मोहनीयकर्मकी दश, नौ, अथवा आठ प्रकृतियोंका वेदक हो ।
शंका-मोहनीयकर्मकी वे दश प्रकृतियां कौनसी हैं ?
समाधान - मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चारों से कोई एक अप्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चारों से कोई एक, प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चारोंमेंसे कोई एक; संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चारों से कोई एक; स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद, इन तीनों वेदोंमेंसे कोई एक, हास्य-रति और अरति-शोक, इन दोनों युगलोंमेंसे कोई एक, भय और जुगुप्सा, ये मोहनीयकर्मकी वे दश प्रकृतियां हैं जिनका उक्त जीव वेदक होता है।
शंका-मोहनीयकर्मकी वे नौ प्रकृतियां कौनसी हैं, जिनका वेदक प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख मिथ्यादृष्टि जीव होता है ?
समाधान-उपर्युक्त दश प्रकृतियोंमेंसे भय और जुगुप्सा, इन दोनों से किसी एकके उदयके विना शेष नौ प्रकृतियां ऐसी जानना चाहिए जिनका उक्त जीव घेदक होता है।
उपर्युक्त दश प्रकृतियोंमेंसे भय और जुगुप्सा, इन दोनोंके उदयके विना शेष आठ प्रकृतियां होती हैं, जिनका कि उदय प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख मिथ्याष्टि जीवके होता है।
चारों आयुकोमेसे किसी एकका वेदक हो।
यदि वह जीव नारकी है, तो नरकगति, पंचेन्द्रियजाति, वैक्रियिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुंडसंस्थान, वैक्रियिकशरीर-अंगोपांग, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श,
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१ प्रतिषु - हिंदंती ' मप्रतौ — हदंति ' इति पाठः ।
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