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२०८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-८, ४. वा । जदि बद्धाउओ आउअस्स दुविहसंतकम्मिओ । अह अबद्धाउओ आउअस्स एक्कसंतकम्मिओ । चत्तारिगदि, पंचजादि, आहारसरीरं वज्ज चत्तारि सरीर, (चत्तारि बंधण) चत्तारि संघाद, छसंहाण, आहारंगोवंगेण विणा दोण्णि अंगोवंग, छसंघडण, वण्ण-गंधरस-फास, चत्तारि आणुपुवी, अगुरुलहुग, उवघाद-परघाद-उस्सास-आदाउज्जोव, दोविहायगदि, तस-थावर-बादर-सुहुम-पत्तेय-साहारण-पज्जत्तापज्जत्त-थिराथिर-सुहासुहसुभग-दुभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-अणादेज-जसकित्ति-अजसकित्ति-णिमिणमिदि णामस्स बाहत्तरिपयडिसंतकम्मिओ । गोदस्स दोपयडिसंतकम्मिओ । अंतराइयस्स पंचपयडिसंतकम्मिओ' । आउगवज्जाणं कम्माणमंतोकोडाकोडीट्ठिदिसंतकम्मिगो।
पंचणाणावरणीय-णवदंसणावरणीय-असादावेदणीय-मिच्छत्त-सोलसकसाय-णवणोकसाय-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-णिरयगदि-तिरिक्खगदि-एइंदिय-वेइंदिय-तेइंदिय-चदुरिंदियजादि-पंचसंठाण-पंचसंघडण-अप्पसत्थवण्ण-गंध-रस फास-णिरयगदि-तिरिक्खगदिपाओग्गाणुपुब्बी-उवघाद-अप्पसत्थविहायगदि-थावर-सुहुम-अपञ्जत्त-साहारणसरीर-अथिर
तियोंकी सत्तावाला हो। यदि वह बद्धायुष्क हो तो आयुकर्मकी भुज्यमान आयु और बध्यमान आयु, इन दो प्रकारके आयुकौकी सत्तावाला हो। अथवा, यदि अबद्धायुष्क हो तो एक आयुकर्मकी सत्तावाला हो। चारों गतियां, पांचों जातियां, आहारकशरीरको छोड़कर चार शरीर, (आहारकबंधनको छोड़कर चार बंधन) आहारकसंघातको छोड़कर चार संघात, छहों संस्थान, आहारकशरीर-अंगोपांगके विना शेष दो शरीरअंगोपांग, छहों संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, चारों आनुपूर्वियां, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छास, आतप, उद्योत, दोनों विहायोगतियां, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, प्रत्येकशरीर, साधारणशरीर, पर्याप्त, अपर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुःस्वर, आदेय, अनादेय, यश-कीर्ति, अयशःकीर्ति और निर्माण, नामकर्मकी इन बहत्तर प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो । गोत्रकर्मकी दोनों प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो । अन्तराय कर्मकी पांचों प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो । आयुकर्मको छोड़कर शेष सात कर्मोंकी अन्तःकोड़ाकोड़ीप्रमाण स्थितिसत्त्ववाला हो।
पांचों ज्ञानावरणीय, नवों दर्शनावरणीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी आदि सोलह कषाय, हास्य आदि नवों नोकषाय, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, नरकगति, तिर्यग्गति, एकेन्द्रियजाति, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति, प्रथम संस्थानके सिवाय शेष पांच संस्थान, प्रथम संहननके सिवाय शेष पांच संहनन, अप्रशस्त वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, उपघात, अप्रशस्तविहायोगति, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारणशरीर, अस्थिर, अशुभ,
१दु ति आउ तित्थहारच उक्कणा सम्मगेण हीणा वा। मिस्सेशृणा वा वि य सव्वे पयडी हवे सत्तं ॥ लब्धि. ३१.
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