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१, ९-८, ४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए अधापवत्तकरणं
[२०७ वजंता अस्थि, किंतु ण तस्स पढमसम्मत्तववएसो । कुदो १ सम्मत्तादो तस्सुप्पत्तीए । तदो तेण मिच्छाइट्ठिणो चैव होदव्वं । सो वि पज्जत्तो चेव, अपज्जत्ते पढमसम्मत्तुप्पत्तिविरोहादो।
सो देवो वा णेरइओ वा तिरिक्खो वा मणुसो वा । इत्थिवेदो पुरिसवेदो णउसयवेदो वा । मणजोगी वचिजोगी कायजोगी वा। कोधकसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई वा, किंतु हायमाणकसाओ । असंजदो। मदि-सुदसागारुवजुत्तो। तत्थ अणागारुवजोगो णत्थि, तस्स बज्झत्थे पउत्तीए अभावादो। छण्णं लेस्साणमण्णदरलेस्सो, किंतु हायमाणअसुहलेस्सो वड्डमाणसुहलेस्सो । भव्यो। आहारी । णाणावरणीयस्स पंचपयडिसंतकम्मिओ । दसणावरणीयस्स णवपयडिसंतकम्मिओ। वेदणीयस्स दुवे पयडीओ संतकम्मिओ । मोहणीयस्स सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तेहि विणा छब्बीसपयडीणं संतकम्मिगो, सम्मत्तेण विणा मोहणीयस्स सत्तावीससंतकम्मिगो, मोहणीयस्स अट्ठावीससंतकम्मिओ
होते हैं, किन्तु उस सम्यक्त्वका 'प्रथमोपशमसम्यक्त्व' यह नाम नहीं है, क्योंकि, उस उपशमश्रेणीवाले उपशमसम्यक्त्वकी उत्पत्ति सम्यक्त्वसे होती है। इसलिए प्रथमोपशमसम्यक्त्वको प्राप्त करनेवाला जीव मिथ्यादृष्टि ही होना चाहिए । वह भी पर्याप्तक ही होना चाहिए, क्योंकि, अपर्याप्त जीवमें प्रथमोपशमसम्यक्त्वकी उत्पत्ति होनेका विरोध है।
प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख वह जीव देव, अथवा नारकी, अथवा तिर्यंच, अथवा मनुष्य होना चाहिए | स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी अथवा नपुंसकवेदी हो। मनोयोगी, वचनयोगी अथवा काययोगी हो, अर्थात् तीनों योगोंमेंसे किसी एक योगमें वर्तमान हो। क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी अथवा लोभकषायी हो, अर्थात् चारों कषायोंमेंसे किसी एक कषायसे उपयुक्त हो। किन्तु हीयमान कषायवाला होना चाहिए । असंयत हो। मतिश्रुतज्ञानरूप साकारोपयोगसे उपयुक्त हो। प्रथमोपशमसम्यक्त्व उत्पन्न होनेके समय अनाकार उपयोग नहीं होता है, क्योंकि, अनाकार उपयोगकी बाह्य अर्थमें प्रवृत्तिका अभाव है। कृष्णादि छहों लेश्याओंमेंसे किसी एक लेश्यावाला हो, किन्तु यदि अशुभलेश्या हो तो हीयमान होना चाहिए, और यदि शुभलेश्या हो तो वर्धमान होना चाहिए । भव्य हो। आहारक हो । ज्ञानावरणीयकर्मकी पांच प्रकृतियोंका सत्कर्मिक, अर्थात् सत्तावाला हो । दर्शनावरणीय कर्मकी नौ प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो। वेदनीय कर्मकी दो प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो । मोहनीयकर्मकी सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति, इन दोके विना छब्बीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो, अथवा सम्यक्त्वप्रकृतिके विना मोहनीयकर्मकी सत्ताईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला हो, अथवा मोहनीयकर्मकी अट्ठाईस प्रकृति
१ प्रतिषु · ववे जोगी' इति पाठः।
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