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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-७, ३५.
इस उपर्युक्त कथनका कोष्टक इस प्रकार हैस्थितिबन्ध कर्मोंके नाम एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय असंही पंचेन्द्रिय
उत्कृष्ट
मिथ्यात्व १ सागरो-२५ साग. ५० साग. १०० साग. १००० सागरोपम
पम
सोलह कषाय ४,
२००
४.००
ज्ञानावरण दर्शनावरण वेदनीय अन्तराय
नामकर्म गोत्रकर्म
०
१००
२००
२०००
नोकषाय
अपनी उत्कृष्ट स्थितिमेसे पल्यका असंख्यातवां भाग कम करनेपर जो प्रमाण शेष रहे, उतनी जघन्य स्थितिको एकेन्द्रिय जीव बांधते हैं । द्वीन्द्रियसे लेकर असंज्ञी पंचेन्द्रिय तकके जीव अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिमेसे पल्यका संख्यातवां भाग कम करनेपर जो प्रमाण शेष रहे, उतनी जघन्य स्थितिको बांधते हैं । संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंका उत्कृष्ट और जघन्य स्थितिबन्ध सूत्रोंमें पृथक् पृथक् दिखाया गया है । उसका कोष्टक इस प्रकार है
संज्ञी | मिथ्यात्वकर्म पंचेन्द्रिय | दर्शनमोहनीय
चारित्रमोहनीय
ज्ञानावरण दर्शनावरण वेदनीय अन्तराय
नामक | आयुकर्म गोत्रकर्म
उत्कृष्ट | ७० कोड़ाकोड़ी | ४० कोड़ा.
सागरो. सागरो.
३० कोड़ा.
सागरो.
२० कोड़ा. ३३ सागरोपम सागरो.
जघन्य
अन्तर्मुहूर्त
१२ अन्त. वेदनीयकी अन्तर्मुहूर्त
८ अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त १ , शेष कर्मोंकी
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