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१, ९-७, ३५. ] चूलियाए जहण्णट्ठिदीए णिरयगदिआदीणि
[१९५ ।। एवं वेइंदियादीणमसण्णिपंचिंदियपज्जवसाणाणमुक्कस्सट्ठिदिवंधा वत्तव्या। २५ । १० । ७५। ५ । एदे बीइंदियाणं ।५०। २७ । १५ । १७ । एदे तीइंदियाणं ।१००।०° । । २७° । एदे चदुरिंदियाणं । १०००। ४० " । ३०० । २००° । एदे असण्णिपंचिंदियाणमुक्कस्सविदिबंधा' ।
उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एक सागरोपमके दो बटे सात भाग (3) है । इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीवोंसे आदि लेकर असंही पंचेन्द्रिय तकके जीवोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कहना चाहिए। द्वीन्द्रिय जीवोंमें मिथ्यात्वकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पच्चीस (२५) सागरोपम है। कषायोंका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध सौ वटे सात (१००) सागरोपम है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय और वेदनीय, इन कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पचहत्तर बटे सात (७५) सागरोपम है । नामकर्म, गोत्रकर्म और नोकषायोंका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध पचास बटे सात (') सागरोपम है। ये द्वीन्द्रिय जीवोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध हैं। त्रीन्द्रिय जीवों में मिथ्यात्वकर्मका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध पचास (५०) सागरोपम है। कषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध दो सौ बटे सात (२७°) सागरोपम है । शानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय और वेदनीय, इन कर्मोंका डेढ़ सौ बटे सात (१५०) सागरोपम है। नामकर्म, गोत्रकर्म और नोकषायोंका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध सौ वटे सात (७°) सागरोपम है। ये त्रीन्द्रिय जीवोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध हैं। चतुरिन्द्रिय जीवोंमें मिथ्यात्वकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सौ (१००) सागरोपम है। कषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध चार सौ बटे सात (°°°) सागरोपम है। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय और वेदनीय, इन कोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तीन सौ बटे सात (३७) सागरोपम है। नामकर्म, गोत्रकर्म और नोकषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध दो सौ बटे सात (२७) सागरोपम है। ये चतुरिन्द्रिय जीवोंके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवोंमें मिथ्यात्वकर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एक हजार (१०००) सागरोपम है । कपायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध चार हजार बटे सात (५ ०.०१) सागरोपम है। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय और वेदनीय, इन कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध तीन हजार बटे सात (२०७०) सागरोपम है। नामकर्म, गोत्रकर्म और नोकषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध दो हजार बटे सात (२°°°) सागरोपम है। ये असंही पंचेन्द्रिय जीवोंके उत्कृष्ट स्थितिवन्ध हैं।
१ एवं पणकदि पण्णं सयं सहस्स च मिच्छवरबंधो । इगिविगलाणं अवरं पल्लासंखूणसंखूण ॥ जदि सत्चरिस्स एत्तियमे किं होदि तीसियादीणं । इदि संपाते सेसाणं इगित्रिगलेसु उभय ठिदी। गो. क.१४४-१४५.
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