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१,९-६, २४.] चूलियाए जहण्णट्ठिदीए इस्थिवेदादीणि
[ १९१ सुभग-सुस्सरादीणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेणूण-सागरोबमवेसत्तभागमेत्तजहण्णट्ठिदिबंधो ण घडदे, एदासिं वीससागरोवमकोडाकोडीमेत्तुक्कस्सद्विदीए अभावादो ? ण, जदि वि एदासिमप्पणो उक्कस्सद्विदी वीससागरोवमकोडाकोडीमत्ता णत्थि, तो वि मूलपयडि उक्कस्सटिदिअणुसारेण ओहट्टमाणाणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेणूणसागरोवमवेसत्तभागमेत्तजहण्णट्टिदिबंधाविरोहा । ण च इत्थिवेद-हस्स-रदीयो कसायबंधाणुसारिणीया, णोकसायस्स तदणुसरणविरोहा। एसा जहणणद्विदी बादरेइंदियपज्जत्तएसु
और सुस्वर आदि प्रकृतियोंका पल्योपमके असंख्यातवें भागसे कम सागरोपमके दो बटे सात भागमात्र जघन्य स्थितिवन्ध नहीं घटित होता है, क्योंकि, इन स्त्रीवेदादि प्रकृतियोंकी वीस कोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमाण उत्कृष्ट स्थितिका अभाव है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, यद्यपि इन स्त्रीवेद आदिकी अपनी उत्कृष्ट स्थिति वीस कोड़ाकोडी सागरोपमप्रमाण नहीं है, तो भी मूल प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिके अनुसार हासको प्राप्त होती हुई इन प्रकृतियोंका पल्योपमके असंख्यातवें भागसे कम सागरोपमके दो बेटे सात भागमात्र जघन्यस्थितिके बंधनेमें कोई विरोध नहीं है । तथा, स्त्रीवेद, हास्य और रति, ये प्रकृतियां कषायोंके बन्धका अनुसरण करनेवाली नहीं हैं, क्योंकि, नोकपायके कषाय-बन्धके अनुसरणका विरोध है। .
विशेषार्थ-यहां शंकाकारका अभिप्राय यह है कि इस सूत्रमें जिन प्रकृतियोंकी एक ही प्रमाणवाली जघन्य स्थिति बतलाई गई है उनमेसे नपुंसकवेद, अरति,शोक,भय, जुगुप्सा, तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिक, तेजस और कार्मणशरीर, हुंडकसंस्थान, औदारिकशरीरांगोपांग, सृपाटिकासंहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उचास, आताप, उद्योत, अप्रशस्तविहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयश-कीर्ति, निर्माण और नीचगोत्र, इन प्रकृतियोंका तो उत्कृष्ट स्थितिबन्ध २० कोड़ाकोड़ी सागर वतलाया गया है, इसलिए इनका एकेन्द्रियसम्बन्धी उत्कृष्ट स्थितिवन्ध २०४१ = २ कोड़ाकोड़ी सागरोपम और जघन्य स्थितिबन्ध उसमेंसे वीचारस्थानोंका प्रमाण पल्योपमका असंख्यातवां भाग कम करनेसे प्राप्त हो जायगा। किन्तु सूत्रोक्त अन्य प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तो २० कोड़ाकोड़ी सागरोपमसे हीन है। जैसे-द्वितीय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रियजाति, वामनसंस्थान, कीलितसंहनन, सूक्ष्म,अपर्याप्त और साधारणका १८ कोड़ाकोड़ी सागर, कुब्जकसंस्थान, और अर्धनाराचसंहननका १६ कोड़ाकोड़ी सागर, स्त्रीवेद, मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीका १५ कोड़ाकोड़ी सागर, स्वातिसंस्थान और नाराचसंहननका १४, न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान और वज्रनाराचसंहननका १२, तथा हास्य, रति, समचतुरस्त्रसंस्थान, वज्रवृषभनाराचसंहनन, प्रशस्तविहायोगति, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर और आदेयका १० कोडाकोड़ी सागरोपमप्रमाण उत्कृष्ट स्थितिवन्ध पाये जानेसे नियमानुसार उनका जघन्य स्थिति बन्ध भी
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