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छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, ९-७, २४.
इत्थवेद- उसय वेद-हस्स-रदि- अरदि-सोग-भय-दुगुंछा-तिरिक्खग- मणुसगइ - एइंदिय-वीइंदिय-तीइंदिय- चउरिंदिय - पंचिंदियजादि-ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीरं छण्हं संद्वाणाणं ओरालियसरीरअंगोवंगं छण्हं संघडणाणं वण्ण-गंध-रस- फासं तिरिक्खगइ मणुसगइपाओग्गाणुपुव्वी अगुरुअलहुअ-उवघाद - परघाद- उस्सास- आदाउज्जोव-पसत्थविहाय ग दि - अप्पसत्थविहायगदि-तस थावर-- बादर - सुहुम-पज्जत्तापज्जतपत्तेय-साहारणसरीर-थिराथिर - सुभासुभ-सुभग- दुभग सुस्सर -- दुस्सरआदेज-अणादेज्ज-अजस कित्ति - णिमिणणीचा गोदाणं जहण्णगो हिदिबंधो सागरोवमस्स वे-सत्तभागा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ऊणया ॥ २४ ॥
वुंसयवेद-अरदि-सोग-भय-दुर्गुछा-पंचिदियजादिआदीण जहण्णओ द्विदिबंधो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेणूणसागरोवमस्स वे सत्तभागमेत्तो होदु णाम, एदासिं वीससागरोवमको डाकोडीमेत्तुक्कस्सट्ठिदिदंसणादो । किंतु इत्थवेद - हस्स-रदि-थिर सुभ
स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, तिर्यग्गति, मनुष्यगति, एकेन्द्रियजाति, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रियजाति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, छहों संस्थान, औदारिकशरीर - अंगोपांग, छहों संहनन, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, प्रशस्तविहायोगति, अप्रशस्तविहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येकशरीर, साधारणशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुभंग, सुस्वर, दुःस्वर, आदेय, अनादेय, अयशः कीर्त्ति, निर्माण और नीचगोत्र, इन प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध पल्योपमके असंख्यातवें भागसे कम सागरोपमके दो बटे सात भाग है ॥ २४ ॥
शंका- नपुंसकवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा और पंचेन्द्रियजाति आदि प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबंध पल्योपमके असंख्यातवें भागसे कम सागरोपमके दो बटे सात भागमात्र भले ही रहा आवे, क्योंकि, इन प्रकृतियोंकी वीस कोड़ाकोड़ी सागरोप्रमाण उत्कृष्ट स्थिति देखी जाती है । किन्तु स्त्रीवेद, हास्य, रति, स्थिर शुभ, सुभग,
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