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________________ १, ९–७, २३. ] चूलियाए जहण्णट्टिदीए पुरिस वेदो [ १८९ ण, भिण्णट्ठाणेसु बंधवोच्छेदपदंसणङ्कं पुध पुध तस्सुच्चारणादो, पज्जवडियणए अवलंबिज्जमाणे तिण्णमेगत्तविरोधादो वा पुध पुधुच्चारणं कीरदे | अंतमुत्तमाबाधा ॥ १९ ॥ संखेज्जरूवेहिं जहण्णट्ठिदिम्हि भागे हिदे जहण्णाबाधुव लं भादो । आबाघूर्णिया कम्मट्टिदी कम्मणिसेओ ॥ २० ॥ सुगममेदं । पुरिसवेदस्स जहण्णओ हिदिबंधो अट्ट वस्साणि ॥ २१ ॥ अंतमुत्तमावाधा ॥ २२ ॥ आवाघूणिया कम्मट्टिदी कम्मणिसेओ ॥ २३ ॥ दाणि तिणि वित्ताणि सुगमाणि । समाधान – नहीं, क्योंकि, भिन्न भिन्न स्थानों में इन तीनों संज्वलन कषायोंका बंध-व्युच्छेद बतलाने के लिए पृथक् पृथक् उसका, अर्थात् संज्वलनशब्द का उच्चारण किया है । (विशेषके लिए देखो इसी भागके पृ० ४५ का विशेषार्थ ) । अथवा पर्यायार्थिक नयके अवलंबन किये जानेपर तीनों कषायोंके एकताका विरोध है, अर्थात् तीनों एक नहीं हो सकते, इसलिए क्रोध आदि पदों के साथ संज्वलनशब्दका पृथक् पृथक् उच्चारण किया है । क्रोधादि तीनों संज्वलनकषायोंका जघन्य आबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त है || १९ ॥ क्योंकि, संख्यात रूपोंसे जघन्य स्थितिमें भाग देनेपर जघन्य आबाधा प्राप्त होती है । क्रोधादि तीनों संज्वलनकषायों के आबाधाकालसे हीन जघन्य कर्मस्थितिप्रमाण उनका कर्म-निषेक होता हैं ॥ २० ॥ यह सूत्र सुगम है । पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध आठ वर्ष है ॥ २१ ॥ आबाधाकाल अन्तमुहूर्त है ॥ २२ ॥ Satara or जघन्य कर्मस्थितिप्रमाण उसका कर्म - निषेक होता है ।। २३ ॥ ये तीनों ही सूत्र सुगम हैं । Jain Education International १ पुरिसस्स य अट्ठ य वस्सा जहणट्टिदी | गो. क. १४०. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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