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________________ १८८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-७, १६. उच्चदे ? ण, बादरेइंदियपज्जत्तएसु वीचारट्ठाणाणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताणं चेव वेदणासुत्तम्हि णिद्दिट्टत्तादो । अंतोमुहुत्तमाबाधा ॥१६॥ कुदो ? आवाधाकंडएण ओवट्टिदसमऊणजहण्णट्ठिदिम्हि समयाधियम्हि जहण्णावाधुवलंभादो । सेसं सुगमं ।। आवाधूणिया कम्माढिदी कम्मणिसेगो॥ १७ ॥ एद पि सुगम । कोधसंजलण-माणसंजलण-मायसंजलणाणं जहण्णओ हिदिबंधी वे मासा मासं पक्खं ॥ १८ ॥ जधासंखेण कोधसंजलणस्स जहण्णओ द्विदिबंधो वे मासा, माणस्स मासो, मायाए पक्खो त्ति घेत्तव्यो । किमदं पुध पुध संजलणसद्दच्चारणं कीरदे ? हीन करना किसलिए कहते हैं ? समाधान-नहीं, क्योंकि, वेदनासूत्र में बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंमें वीचारस्थान पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र ही निर्दिष्ट किये गये हैं। (और उत्कृष्ट स्थितिमेंसे वीचारस्थानोंको घटाने पर जघन्य स्थिति प्राप्त होती है।) अनन्तानुबन्धी आदि बारह कषायोंका जघन्य आबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥१६॥ क्योंकि, आबाधाकांडकके द्वारा एक समय कम जघन्य स्थितिको अपवर्तन करके पुनः उसमें एक समय अधिक करनेपर जघन्य आवाधाकी उपलब्धि होती है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। उक्त बारह कषायोंके आवाधाकालसे हीन जघन्य कर्मस्थितिप्रमाण उनका कर्म-निषेक होता है ॥ १७ ॥ __यह सूत्र भी सुगम है। क्रोधसंज्वलन, मानसंज्वलन और मायासंज्वलन, इन तीनोंका जघन्य स्थितिबन्ध क्रमशः दो मास, एक मास और एक पक्ष है ॥ १८॥ यथासंख्य, अर्थात् संख्याके क्रमानुसार, क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध दो मास, मानसंज्वलनका एक मास और मायासंज्वलनका एक पक्ष होता है, ऐसा अर्थ ग्रहण करना चाहिए। शंका-क्रोध आदि पदोंके साथ पृथक् पृथक् संज्वलनशब्दका उच्चारण किसलिए किया है? १ दुगेकदलमासं कोहतिये ॥ गो. क. १४०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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