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चूलियाए जहण्णदिए बारस कसाया
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आवलियाए असंखेज्जदिभागेण बादरेइंदियपज्जत्ताणमाबाधट्ठाणविसेसेण रूवाहिएण एगमाबाधाकुंडयं गुणिय रूऊणं काढूण सागरोवमम्हि सोहिदे मिच्छत्तजहण्णदिसमुप्पत्तदो । बादरेइंदियअपज्जत्तपसु सुहुमेईदियपज्जत्तापज्जत्तेसु वा मिच्छत्तस्स जहण्णओ ट्ठदिबंधो किण्ण होदीदि चे ण, एदेसु वीचारट्ठाणाणं बहुत्ताभावा ।
अंतोमुहुत्तमाबाधा ॥ १३॥
कुदो ? समऊणजहण्णविदिम्हि आबाधाकंडरण भागे हिदे लद्धरूवाहियस्स जहण्णाबाधत्तन्भुवगमादो |
आवाघूणिया कम्मदी कम्मणिसेओ ॥ १४॥
सुगममेदं ।
वारसहं कसायाणं जहण्णओ द्विदिबंधो सागरोवमस्त चत्तारि सत्तभागा पलिदोवस्त असंखेज्जदिभागेण ऊणया ॥ १५ ॥
किमङ्कं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण सागरोवमचत्तारिसत्तभागाणेमूण सं
क्योंकि, बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके आबाधास्थानविशेषस्वरूप एक रूप अधिक, आवली असंख्यातवें भागसे एक आबाधाकांडकको गुणा करके उसमेंसे एक कम करके सागरोपममेंसे घटा देनेपर मिथ्यात्वकर्मकी जघन्य स्थिति उत्पन्न होती है ।
शंका- बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंमें, अथवा सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक और अपर्याप्त जीवोंमें, मिथ्यात्वकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध क्यों नहीं होता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंमें, अथवा सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्तक जीवोंमें, वीचारस्थानोंकी बहुलताका अभाव है । मिथ्यात्वकर्मका जघन्य आबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १३ ॥
क्योंकि, एक समय कम जघन्य स्थितिमें आबाधाकांडकसे भाग देने पर जो राशि लब्ध हो, उसमें एक रूप अधिक करनेपर उत्पन्न राशिको जघन्य आबाधाकाल माना है।
मिथ्यात्वकर्मके आबाधाकालसे हीन जघन्य कर्म-स्थितिप्रमाण उसका कर्म-निषेक होता है ॥ १४ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
अनन्तानुबन्धी आदि बारह कषायका जघन्य स्थितिबन्ध पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन सागरोपमके चार बटे सात भागप्रमाण है ॥ १५ ॥ शंका - सागरोपमके चार वटे सात भागोंको पल्योपमके असंख्यातवें भाग से
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