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________________ १८६ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१,९-७, १०. कुदो ? सुहुमसांपराइयचरिमसमयबंधादो । तीसियस्स दंसणावरणीयस्स अंतोमुहुत्तमेत्तहिदि बंधमाणो सुहुमसांपराइओ तीसियवेदणीयभेदस्स सादावेदणीयस्स पण्णारससागरोवमकोडाकोडीउक्कस्सट्ठिदिअस्स कधं वारसमुहुत्तियं जहण्णट्ठिदिं बंधदे ? ण, दसणावरणादो सुहस्स सादावेदणीयस्स विसोधीदो सुटु द्विदिबंधोवदृणाभावा । अंतोमुत्तमाबाधा ॥ १० ॥ कुदो ? संखेज्जरूबेहि वारसमुहुत्तेसु' ओवट्टिदेसु अंतोमुहुत्तुवलंभादो । आबाधूणिया कम्मट्ठिदी कम्माणिसेओ ॥ ११॥ सुगममेदं । मिच्छत्तस्स जहण्णगो द्विदिवंधो सागरोवमस्स सत्त सत्तभागा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ऊणिया ॥ १२ ॥ क्योंकि, सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानवर्ती क्षपक संयतके अन्तिम समयमें यह जघन्य बंध होता है। शंका-तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपमकी उत्कृष्ट स्थितिवाले दर्शनावरणीय कर्मकी अन्तर्मुहूर्तमात्र जघन्य स्थितिको बांधनेवाला सूक्ष्मसांपराय संयत तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपमकी उत्कृष्ट स्थितिवाले वेदनीयकर्मके भेदस्वरूप पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमित उत्कृष्ट स्थितिवाले सातावेदनीयकर्मकी वारह मुहूर्तवाली जघन्य स्थितिको कैसे बांधता है ? समाधान नहीं, क्योंकि, दर्शनावरणीय कर्मकी अपेक्षा शुभ प्रकृतिरुप सातावेदनीय कर्मकी विशुद्धिके द्वार तीय कर्मकी विशद्धिके द्वारा स्थितिबन्धकी अधिक अपवर्तनाका अभाव है। अर्थात सातावेदनीय पुण्य प्रकृति है, अतएव विशुद्धिके द्वारा उसकी स्थितिका घात अधिक नहीं होता है। किन्तु दर्शनावरणीय पाप प्रकृति है, अतएव विशुद्धिसे उसकी स्थितिका अधिक घात होता है। ___ सातावेदनीय कर्मका जघन्य आबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १० ॥ .. क्योंकि, संख्यात रूपांसे बारह मुहूतौके अपवर्तन करनेपर अन्तर्मुहूर्तकी प्राप्ति सातावेदनीय कर्मके आबाधाकालसे हीन जघन्य कर्म-स्थितिप्रमाण उसका कर्म-निषेक होता है ॥ ११ ॥ यह सूत्र सुगम है। मिथ्यात्वकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन सागरोपमके सात बटे सात भागप्रमाण है ॥ १२ ॥ १ प्रतिषु — वारसमुहुते' इति पाठः। होती है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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