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१, ९-७, ९.] चूलियाए जहण्णट्ठिदीए सादावेदणीय
[१८५ लद्धवीचारहाणाणि अवणिदे जहण्णओ द्विदिबंधो होदि । सेसं सुगमं ।
अंतोमुत्तमाबाधा ॥७॥
तं जधा- एगेणावाधाकंडएण समऊणजहण्णट्ठिदिम्हि भागे हिदे लद्धं रूचाहियं जहण्णाबाधा होदि । किमटुं जहण्णट्ठिदी समऊणं करिय आवाधाकंडएण भागो घेप्पदे? ण, पुब्बं समऊणावाधाकंडएण विणा जहण्णत्तमुवगदत्तादो ।
आबाधूणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिसेओ ॥८॥ सुगममेदं ।
सादावेदणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो वारस मुहुत्ताणि ॥९॥ हुए वीचारस्थानोंको उक्त राशिमेंसे घटानेपर जघन्य स्थितिबन्ध होता है।
उदाहरण- मान लो उत्कृष्ट स्थिति = ६४; आबाधा = १६, आबाधाकांडक = ६४ = ४; आवाधाके स्थानोंका विशेष = ४ ( देखो उत्कृष्टस्थितिचूलिका, सूत्र ५ की टीका)। अतएव जघन्य स्थिति होगी- (४+१) x ४ - १ = १९ वीचारस्थान; ६४ - १९ = ४५ जघन्य स्थितिबंध ।
शेष सूत्रार्थ सुगम है।
पूर्व सूत्रोक्त निद्रानिद्रादि छह कर्म-प्रकृतियोंका जघन्य आवाधाकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ७॥
वह इस प्रकार है- एक आवाधाकांडकके द्वारा एक समय कम जघन्य स्थितिमें भाग देनेपर जो राशि लब्ध हो, उसमें एक जोड़नेपर जघन्य आवाधा होती है।
उदाहरण- मान लो जघन्य स्थिति = ४५; आवाधाकांडक = ४। अतएव (४५-१):४+१= १२ जघन्य आबाधा।
__ शंका-जघन्य स्थितिको एक समय कम करके उसमें आबाधाकांडकके द्वारा भाग किसलिए देते हैं ?
समाधान नहीं, क्योंकि, पहले एक समय कम आवाधाकांडकके विना जघन्यता मानी गई है।
पूर्व सूत्रोक्त निद्रानिद्रादि छह कर्मोके आवाधाकालसे हीन जघन्य कर्मस्थितिप्रमाण उनका कर्म-निषेक होता है ॥ ८॥
यह सूत्र सुगम है। सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध बारह मुहूर्त है ॥ ९॥
१ जेहाबाहोवट्टियजेहें आबाहकंडयं तेण । आबाहवियप्पहदेणेगूणेगूणजेट्ठमवरठिदी। गो. क. १४७. २ अपरा द्वादश मुहूर्ता वेदनीयस्य ॥ त. सू. ८, १८. वारस य वेयणीये ॥ गो. क. १३९.
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