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१, ९-६, ४४.] चूलियाए उक्कस्सहिदीए खुजसंठाणादीणि [ १७९
तं जधा- दसकोडाकोडीसागरोवमाणं जदि दसवाससदमेत्ताबाधा लब्भदि, तो चोदसकोडाकोडीसागरोवमेसु किं लभामो त्ति फलगुणिदमिच्छं पमाणेणोवट्टिदे चोदसवाससदाणि' आबाधा होदि।
आवाधूणिया कम्मट्टिदी कम्मणिसेओ ॥ ४१ ॥ सुगममेदं ।
खुज्जसंठाण-अद्धणारायणसंघडणणामाणमुक्कस्सओ द्विदिबंधी सोलससागरोवमकोडाकोडीओ ॥ ४२ ॥
एदं पि सुगमं । सोलसवाससदाणि आबाधा ॥ ४३ ॥ आवाधूणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिसेओ ॥४४॥ एदाणि दो वि सुत्ताणि सुगमाणि ।
एवं छट्टी चूलिया समत्ता । वह इस प्रकार है- दश कोड़ाकोड़ी सागरोपम स्थितिवाले कर्मोकी आवाधा यदि दश सौ (१०००) वर्षप्रमाण प्राप्त होती है, तो चौदह कोड़ाकोड़ी सागरोपम स्थितिवाले कर्मों में कितनी आबाधा प्राप्त होगी, इस प्रकार इच्छाराशिको फलराशिसे गुणा करके प्रमाणराशिसे अपवर्तन करनेपर चौदह सौ (१४००) वर्षप्रमाण आवाधा प्राप्त होती है। १४ ४ १ ० ० ० = १४००.
स्वातिसंस्थान और नाराचसंहनन, इन दोनों नामकर्मोंके आवाधा-कालसे हीन कर्मस्थितिप्रमाण उनका कर्म-निषेक होता है ॥४१॥
यह सूत्र सुगम है।
कुब्जकसंस्थान और अर्धनाराचसंहनन, इन दोनों नामकर्मीका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सोलह कोड़ाकोड़ी सागरोपम है ॥ ४२ ॥
यह सूत्र भी सुगम है। उक्त दोनों कर्मोंका उत्कृष्ट आवाधाकाल सोलह सौ वर्ष है ॥४३॥
उक्त दोनों कर्मोके आबाधाकालसे हीन कर्मस्थितिप्रमाण उनका कर्म-निषेक होता है ॥४४॥ ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं।
इस प्रकार छठी चूलिका समाप्त हुई।
१ प्रतिषु वाससहस्साणि ' इति पाठः।
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