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१७८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-६, ३७. णामत्तणेण भेदे इदरणामकम्मेहितो असंते वि किमटुं द्विदिभेदो ? ण, पयडिविसेसेण भिण्णाणं विदिभेदं पडि विरोधाभावा । सेसं सुगमं ।
वारसवाससदाणि आबाधा ॥ ३७ ॥
एगेण आवाधाकंडएण अप्पिदुक्कस्सट्ठिदिम्हि भागे हिदे वारसवाससदमेत्ता आबाधा होदि।
आवाधूणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिसेगो ॥ ३८ ॥ सुगममेदं ।
सादियसंठाण-णारायसंघडणणामाणमुक्कस्सओ द्विदिवंधो चोदससागरोवमकोडाकोडीओ ॥ ३९ ॥
एदं पि सुगमं । चोहसवाससदाणि आबाधा ॥ ४०॥
शंका-नामत्वकी अपेक्षा इतर नामकर्मोंसे भेद नहीं होनेपर भी उक्त प्रकृतियोंकी स्थितिमें भेद किसलिए है ? ।
समाधान-नहीं, क्योंकि, प्रकृति-विशेषकी अपेक्षासे भिन्नताको प्राप्त प्रकृतियोंके स्थिति-भेद मानने में कोई विरोध नहीं है।
शेष सूत्रार्थ सुगम है।
न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान और वज्रनाराचसंहनन, इन दोनों प्रकृतियोंका उत्कृष्ट आबाधाकाल बारह सौ वर्ष है ॥ ३७॥
एक आवाधाकांडकसे विवक्षित उत्कृष्ट स्थितिमें भाग देने पर बारह सौ वर्षप्रमाण आबाधा प्राप्त होती है।
उक्त दोनों कर्मोंके आवाधाकालसे हीन कर्मस्थितिप्रमाण उनका कर्म-निषेक होता है ॥ ३८॥
यह सूत्र सुगम है।
स्वातिसंस्थान और नाराचसंहनन, इन दोनों नामकोका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध चौदह कोड़ाकोड़ी सागरोपम है ॥ ३९ ॥
यह सूत्र भी सुगम है। उक्त दोनों कर्मोंका उत्कृष्ट आवाधाकाल चौदह सौ वर्ष है ॥ ४० ॥ १ प्रतिषु · विणाणं ' इति पाठः।
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