________________
१, ९-६, २६.] चूलियाए उक्क स्सद्विदीए तिरिक्ख-मणुसाउआणि ण, विदियबारमाबाधाणिद्देसेण आवाधूणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिसेगो होदि त्ति सिद्धीदो। कुदो ? अण्णहा विदियवारआवाधाणिद्देसाणुववत्तीदो ।
तिरिक्खाउ-मणुसाउअस्स उक्कस्सओ द्विदिबंधो तिण्णि पलिदोवमाणि ॥२६॥
एसा वि णिसेयहिदी चेव णिहिट्ठा । कुदो ? तिरिक्ख-मणुसेसु तिण्णि पलिदोवममेत्ताए ओरालियसरीरउक्कस्सद्विदीए उवलंभादो । किमट्ठमाबाधाए सह णिसेगुक्कस्सद्विदी ण परूविदा ? ण, णिसेगावाधाओ अण्णोण्णायत्ताओ ण होति त्ति जाणावणटुं तधा णिदेसादो । एदस्स भावो- उक्कस्साबाधाए जहण्णणिसेयट्ठिदिमादि कादूण जावुक्कस्सणिसेयहिदी ताव बंधदि । एवं समऊण-दुसमऊणुक्कस्साबाधादीणं पि परूवेदव्वं जाव असंखेपद्धा त्ति । पुयकोडितिभागादो आवाधा अहिया किण्ण होदि ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, दूसरी बार 'आबाधा' इस सूत्रके निर्देश-द्वारा 'आवाधाकालसे रहित कर्म स्थिति ही उन कर्मोंकी निषेक स्थिति होती है, ' यह बात सिद्ध हो जाती है । और यदि वैसा न माना जाय, तो दूसरी वार 'आबाधा' इस सूत्रके निर्देशकी उपपत्ति बन नहीं सकती है।
तिर्यगायु और मनुष्यायुका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तीन पल्योपम है ॥ २६ ॥
यह भी निषेक स्थिति ही निर्दिष्ट की गई है, क्योंकि, तिर्यंच और मनुष्योंमें तीन पल्योपममात्र औदारिकशरीरकी उत्कृष्ट स्थिति पाई जाती है।
शंका - आवाधाके साथ निषेकोंकी उत्कृष्ट स्थिति किसलिए नहीं निरूपण की गई?
समाधान नहीं, क्योंकि, यहां निषेककाल और आवाधाकाल परस्पर एक दूसरेके आधीन नहीं होते हैं, यह जतलानेके लिए उस प्रकारसे निर्देश किया गया है, अर्थात् आवाधाके साथ निषेकोंकी उत्कृष्ट स्थिति नहीं बतलाई गई है।
इस उपर्युक्त कथनका भाव यह है- उत्कृष्ट आवाधाके साथ जघन्य निषेकस्थितिको आदि करके उत्कृष्ट निषेक स्थिति तक जितनी निषेक-स्थितियां हैं, वे सब बंधती हैं । इसी प्रकार एक समय कम, दो समय कम ( इत्यादि रूपसे उत्तरोत्तर एक एक समय कम करते हुए) असंक्षेपाहा काल तक उत्कृष्ट आवाधा आदिकी प्ररूपणा करनी चाहिए।
शंका-आयुकर्मकी आवाधा पूर्वकोटीके त्रिभागसे अधिक क्यों नहीं होती है ?
१ xxx णरतिरियाऊण तिप्णि पल्लाणि । उक्करसहिदिबंधो । गो क. १३३.
२ पुवाणं कोडितिभागादासंखेपद्ध वो ति हवे । आउस्स य आबाहा ण हिदिपडिभागमाउस्स ॥ गो. क. १५८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org