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१५४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-६, ६. ___एत्थ णिसेगाणं संदिट्ठी ५१२ । ४८० | ४४८।४१६ । ३८४ | ३५२ | ३२० । २८८ । २५६ २४० २२४ | २०८ | १९२ । १७६ १६० १४४ । १२८ । १२० । ११२।१०४ ! ९६ ८८/८०/७२ ६४।६०५६,५२/४८ ४४ । ४०३६ । ३२ । ३० | २८/२६ २४ २२ | २० | १८ । १६ । १५ १४|१३ | १२|११| १०।९। एसा संदिट्ठी आवाहूणकम्महिदीए । सयलकम्मट्ठिदीए किण्ण होदि ? ण, आवाहभंतरे पदेसणिसेयाभावादो। ण च एवं घेप्पमाणे चरिमगुणहाणिअद्धाणं तीहि वाससहस्सेहि ऊणयं होदि, णाणागुणहाणिसलागाहि आबाहूणकम्माहिदीए ओवट्टिदाए एयगुणहाणिआयामपमाणुवलंभादो । ण च णिसेगट्टिदीए कम्मट्ठिदिएयत्तमसिद्धं',
यहांपर सर्व निषेकोंकी संदृष्टि इस प्रकार हैगुणहानि प्रथम गुणहानि द्वितीय गुण.तृतीय गुण. चतुर्थ गुण. पंचम गुण. षष्ठ गुण.
आयाम
५१२ ४८० ४४८
२५६ २४० २२४ २०८
६० ५६
१४
orm509
५२
३८४
४८
३५२ ३२० २८८
१६०
सर्व द्रव्य ३२०० + १६०० + ८०० + ४०० + २०० + १००% ६३००
यह संदृष्टि आवाधाकालसे हीन कर्मस्थितिकी है। शंका-यह संदृष्टि समस्त कर्मस्थितिकी क्यों नहीं है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, आबाधाकालके भीतर प्रदेशोंकी निषेक-रचनाका अभाव होता है। तथा ऐसा माननेपर अन्तिम गुणहानिका अध्वान तीन हजार वर्षों से कम भी नहीं होता है, क्योंकि, नाना-गुणहानि शलाकाओंसे आबाधा-रहित कर्मस्थितिके अपवर्तित करनेपर एक गुणहानिके आयाम, अर्थात् कालका प्रमाण प्राप्त होता है।
विशेषार्थ--यहां टीकाकार द्वारा दी हुई निषेकोंकी संदृष्टि निम्न कल्पनाओंके आधारसे की गई है-- उत्कृष्टस्थिति = ६४ समय; आबाधा = १६ समय; निषेक स्थिति ६४-१६= ४८ समय; समयप्रबद्धमें पुद्गलपरमाणुओंकी संख्या ६३०० ।
तथा, निषेक स्थितिका कर्म-स्थितिसे एकत्व आसिद्ध भी नहीं है, क्योंकि,
१ प्रतिषु ' कम्मद्विदीएतमसिद्ध ' इति पाठः।
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