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१५२ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-६, ६. मुवरि गंतूण पक्खेवो पदणिसेयस्स चदुभागो होदि । एदमद्धाणं विदिया दुगुणहाणि त्ति विदिया सलागा णिक्खिविदव्या । एवं णेयव्वं जाव कम्मट्ठिदिचरिमगुणहाणि त्ति । एदासिं सलागाणं सव्वसमासो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो मोहणीयणाणागुणहाणिसलागाणं तिण्णिसत्तभागमेत्ता त्ति उत्तं होदि । मोहणीयणाणागुणहाणिसलागा पुण परमगुरूवदेसेण पलिदोवमवग्गसलागद्धछेदेणूणपलिदोवमद्धछेदणयमेत्ता' । णाणागुणहाणिसलागाहि कम्मढिदिम्हि भागे हिदे गुणहाणी (आगच्छदि। सा) सव्वकम्माणं समाणा' । कुदो ? भज्जमाणाणुसारिभागहारादो। सव्वमेदं दव्वं पढमणिसेयपमाणेण कीरमाणे दिवड्डगुणहाणिमेत्ता पढमणिसेया होति । कुदो ? पढमगुणहाणिम्हि पदिददव्वादो विदियादिगुणहाणीसु पदिददव्यस्स दुभाग-चदुब्भागत्तादिदंसणादो । तं पि कुदो ?
प्रमाण ऊपर जाकर प्रक्षेप पद निषेकके, अर्थात् प्रथम गुणहानिसम्बन्धी प्रथम निषेकके, चतुर्भागप्रमाण हो जाता है । इस अध्वानको दूसरी दुगुणहानि कहते हैं, अतएव उसकी दूसरी शलाका पृथक् स्थापन करना चाहिए । इस प्रकार यह क्रम कर्मस्थितिकी अन्तिम गुणहानि प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए । इन शलाकाओंका समस्त जोड़ पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र होता है, जो कि मोहनीयकर्मकी नानागुणहानिशलाकाओंके तीन बटे सात ) भागप्रमाण होता है, यह अर्थ कहा गया है । मोहनीयकर्मकी नानागुणहानिशलाकाएं तो परम गुरुके उपदेशानुसार पल्योपमकी वर्गशलाकाओंके अर्धच्छेदोंसे कम पल्योपमके अर्धच्छेदोंके प्रमाण होती हैं ।
उदाहरण-मान लो, पल्योपम = ६५५३६ है । इसके अनुसार पल्योपमकी वर्गशलाका ४, पल्योपमके अर्धच्छेद १६, और पल्योपमकी वर्गशलाकाओंके अर्धच्छेद २ होंगे। अतः मोहनीयकर्मकी नानागुणहानिशलाकाएं १६ -२ = १४ होंगी । और ज्ञानावरणादि कर्मोकी नानागुणहानिशलाकाएं १४४ 3 = ६ होंगी। .. नानागुणहानि-शलाकाओंके द्वारा कर्म-स्थितिमें भाग देनेपर गुणहानिका प्रमाण आता है । वह गुणहानि सर्व कर्मोंकी समान होती है, क्योंकि भज्यमान राशिके अनुसार भागहार होता है । यह सर्व द्रव्य प्रथम निषेकके प्रमाणसे करनेपर डेढ़ गुणहानि-प्रमित प्रथम निषेकप्रमाण होता है। इसका कारण यह है कि प्रथम गुणहानिमें पतित द्रव्यसे द्वितीयादि गुणहानियोंमें पतित द्रव्य द्विभाग, चतुर्भाग आदि क्रमसे देखा जाता है । और इसका भी कारण यह है कि एक एक, गुणहानिके प्रति आधे,
१ प्रतिषु ' -णयता' इति पाठः । २ सव्वासि पयडीणं णिसेयहारो य एयगुणहाणी । सरिसा हवंतिxxx॥ गो क. ९३२.
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