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१, ९-६, ६.] चूलियाए उक्कस्सहिदीए णाणावरणादीणि
[१५१ तदो णेदं सुत्तं वत्तव्यमिदि ? ण, पवयणे अणुमाणस्स पमाणस्स पमाणत्ताभावादो । आगमो हि णाम केवलणाणपुरस्सरो पाएण अणिंदियत्थविसओ अचिंतियसहाओ जुत्तिगोयरादीदो। तदो ण तत्थ लिंगवलेण किंचि वोत्तुं सक्किादि । तम्हा सुत्तमिदमाढवेदव्वं चेव । अधवा आवाधादो उवरि णिसेयरचणा होदि ति जदि वि जुत्तीए णवदि, तो वि किमुवरिमसव्वविदीसु परमाणुपोग्गलरचणा समाणा होदि, आहो असमाणा ति ण णव्वदे । तदो पदेसरयणासरूवपदंसणटुं वा आढवेदव्वमिदं सुत्तं । संपहि उक्कस्सद्विदीए पदेसरचणक्कम परूवेमो । तं जहा- समयपबद्धस्स सव्वपदेसा अभवसिद्धिएहि अणंतगुणा, सिद्धाणमणंतभागमेत्ता जदि वि होंति, तो वि संदिट्ठीए तिसद्विसदमेत्ता त्ति ते घेत्तव्वा ६३००। एत्थ णाणागुणहाणिसलागा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता होति । तं जहा- पढमणिसओ अवट्ठिदहाणीए जेत्तियमद्धाणं गंतूण अर्द्ध होदि तमद्धाणं गुणहाणि त्ति उच्चदि । तस्स एगा सलागा णिक्खिविदव्या । पुणो तत्तियं चेव अद्धाणनिषेक होता है, यह बात नहीं कहनेपर भी जानी जाती है, अतएव यह सूत्र नहीं कहना चाहिए?
___ समाधान- नहीं, क्योंकि, प्रवचन (परमागम) में अनुमान प्रमाणके प्रमाणता नहीं मानी गई है। जो केवलज्ञानपूर्वक उत्पन्न हुआ है, प्रायः अतीन्द्रिय पदार्थोंको विषय करनेवाला है, अचिन्त्य-स्वभावी है और युक्तिके विषयसे परे है, उसका नाम आगम है। अतएव उस आगममें लिंग अर्थात् अनुमानके बलसे कुछ भी नहीं कहा जा सकता है । इसलिए यह सूत्र बनाना ही चाहिए । अथवा, आवाधासे ऊपर निषेक रचना होती है, यह बात यद्यपि युक्तिसे जानी जाती है, तथापि क्या ऊपरकी सर्व स्थितियोंमें पुद्गल परमाणुओंकी रचना समान होती है, अथवा असमान होती है, यह बात नहीं जानी जाती है । अतएव प्रदेश-रचनाके स्वरूपको बतलानेके लिए यह सूत्र बनाना ही चाहिए।
___ अब उत्कृष्ट स्थितिकी प्रदेश-रचनाके क्रमको कहते हैं। वह इस प्रकार हैयद्यपि एक समयप्रबद्धके सर्व प्रदेश अभव्यसिद्धिक जीवोंसे अनन्तगुणित और सिद्ध जीवोंके अनन्तवें भागमात्र होते हैं, तथापि संदृष्टिमें उन्हें तिरेसठ सौ (६३००) संख्याप्रमाण ग्रहण करना चाहिए। यहां, अर्थात् एक समयप्रबद्धमें, नानागुणहानिशलाकाएं पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र होती हैं। उनका स्पष्टीकरण यह है--प्रथम निषेक अवस्थित हानिसे जितनी दूर जाकर आधा होता है, उस अध्वानको 'गुणहानि' कहते हैं । उस गुणहानिकी एक शलाका पृथक् स्थापन करना चाहिए । पुनः उतने ही अध्वान
१दव्वं ठिदिगुणहाणीणद्धाणं दलसला णिसे यछिदी । अण्णोण्णगुणसला वि य जाणेज्जो सव्व ठिदिरयणे। तेवहिं च सयाई अडदाला अट्ठ छक्क सोलसयं । च उसद्धिं च विजाणे दव्वादीणं च संदिट्ठी। गो. क. ९२३.९२४.
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