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१५० छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-६, ६. तिसमऊणा । चउहि आबाधाकंडएहि ऊणियमुक्कस्सट्ठिदिं बंधमाणस्स आवाधा उक्कस्सिया चदुसमऊणा । एवं णेदव्वं जाव जहण्णट्ठिदि त्ति । सव्वाबाधाकंडएसु वीचारहाणत्तं पत्तेसु समऊणाबाधाकंडयमेतद्विदीणमवहिदा आबाधा होदि त्ति घेत्तव्यं ।
आवाधूणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिसेओं ॥६॥ आवाधाए अवगदाए तदुवरि कम्मणिसेगो होदि त्ति अउत्ते वि जाणिज्जदि,
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जिनकी रच
आवाधा तीन समय कम होती है। चार आवाधाकांडकोसे हीन उत्कृष्ट स्थितिको बांधनेवाले समयप्रबद्धकी उत्कृष्ट आवाधा चार समय कम होती है । इस प्रकार यह क्रम विवक्षित कर्मकी जघन्य स्थिति तक ले जाना चाहिए । इस प्रकार सर्व आबाधाकांडकोके वीचारस्थानत्व, अर्थात् स्थितिभेदोको, प्राप्त होनेपर एक समय कम आबाधाकांडकमात्र स्थितियोंकी आबाधा अवस्थित, अर्थात् एक सी, होती है, यह अर्थ जानना चाहिए।
उदाहरण-मान लो उत्कृष्ट स्थिति ६४ समय और उत्कृष्ट आवाधा १६ समय है । अतएव आबाधाकांडका प्रमाण ६६ = ४ होगा।
मान लो जघन्य स्थिति ४५ समय है। अतएव स्थितिके भेद ६४ से ४५ तक होंगे जिनकी रचना आबाधाकांडकोंके अनुसार इस प्रकार होगी(१) ६४, ६३, ६२, ६१ -
उत्कृष्ट आबाधा (२) ६०, ५९, ५८, ५७ - एक समय कम , (३) ५६, ५५, ५४, ५३-दो , (४) ५२, ५१, ५०, ४९ - तीन ,, ,,
(५) ४८, ४७, ४६, ४५-चार , , ये पांच आबाधाके भेद हुए। आबाधाकांडक ४४५ (आबाधा-भेद) = २० स्थिति-भेद । स्थिति-भेद २० -१ = १९ वीचारस्थान ।
इन्हीं वीचारस्थानोंको उत्कृष्ट स्थितिमेसे घटाने पर जघन्यस्थिति प्राप्त होती है। स्थितिकी क्रमहानि भी इतने ही स्थानोंमें होती है। इस प्रकार 'जेहाबाहोवट्टिय.' (गो. क. १४७) के अनुसार गणितक्रमसे निकले हुए स्थितिके भेदोंको वीचारस्थान समझना चाहिए।
पूर्वोक्त ज्ञानावरणादि कर्मोंका आवाधाकालसे हीन कर्मस्थितिप्रमाण कर्मनिषेककाल होता है ॥६॥
शंका-आबाधाके जान लेनेपर उसके ऊपर अर्थात् आबाधाकालके पश्चात् कर्म
१ आनाइणियकम्मद्विदीणिसेगो दु सत्तकम्माणं । गो. क. १६०, ९१९. २ निषेचनं निषेकः कम्मपरमाणुक्खंधणिक्खेवो णिसेगो णाम | धवला, अ. प्र. प. ९४..
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