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१४६ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[.१, ९-६, ३. उक्कस्सट्ठिदिपरूवणा कीरदे । का ठिदी णाम ? जोगवसेण कम्मस्सरूवेण परिणदाणं पोग्गलक्खंधाणं कसायवसेण जीवे एगसरूवेणावट्ठाणकालो हिदी णाम । तस्स उक्कस्सहिदी चेव पढमं किमढे उच्चदे ? ण, उक्कस्सद्विदीए संगहिदासेसद्विदिविसेसाए परूविदाए सव्वट्टिदीणं परूवणासिद्धीदो।
तं जहा ॥३॥
पंचण्हं णाणावरणीयाणं णवण्हं दंसणावरणीयाणं असादावेदणीयं पंचण्हमंतराइयाणमुक्कस्सओ हिदिबंधो तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ ॥ ४॥
__ एदेसि उत्तकम्माणं उक्कस्सिया द्विदी तीसं सागरोवमकोडाकोडीमेत्ता होदि । तत्थ एगसमयपबद्धपरमाणुपोग्गलाणं किं सव्वेसि पि तीसं सागरोवमकोडाकोडी होदि, आहो ण' होदि त्ति ? पढमपक्खे उवरि उच्चमाणआवाहा-णिसेयसुत्ताणमभावप्पसंगो, स्थितिका निरूपण किया जा रहा है।
शंका-स्थिति किसे कहते हैं ?
समाधान-योगके वशसे कर्मस्वरूपसे परिणत पुद्गल-स्कन्धोंका कषायके वशसे जीवमें एक स्वरूपसे रहनेके कालको स्थिति कहते हैं।
शंका--उस कर्मको उत्कृष्ट स्थिति ही पहले किसलिए कहते हैं ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, समस्त स्थितिविशेषोंकी संग्रह करनेवाली उत्कृष्ट स्थितिके प्ररूपण किये जानेपर सर्व स्थितियों के निरूपण की सिद्धि होती है।
वह उत्कृष्ट स्थिति किस प्रकार है ? ॥ ३ ॥
पांचों ज्ञानावरणीय, नवों दर्शनावरणीय, असातावेदनीय और पांचों अन्तराय, इन कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है ॥ ४ ॥
इन सूत्रोक्त कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमाण होती है।
शंका-इस स्थितिबंधमें एक समयमें बंधे हुए क्या सभी पुद्गल-परमाणुओंकी स्थिति तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम होती है, अथवा सबकी नहीं होती है ? प्रथम पक्षके माननेपर आगे कहे जानेवाले आवाधा और निषेकसम्बन्धी सूत्रोंके अभावका प्रसंग आता है, क्योंकि, समान स्थितिवाले कर्म-स्कन्धोंमें आबाधा, निषेक और विशेष
१ आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटिकोटयः परा स्थितिः ॥ त. सू. ८, १४. तीसं कोडाकोडी तिघादितदिएसु ॥ गो. क. १२७.
२ प्रतिषु '-कोडाकोडी आहूण ' इति पाठः ।
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