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छही चूलिया केवडि कालट्ठिदीएहि कम्मेहि सम्मत्तं लब्भदि वा ण लब्भदि वा, ण लब्भदि त्ति विभासा ॥१॥
एदस्सत्थो-कम्मेहि केवडिकालट्ठिदीएहि संतेहि जीवो सम्मत्तं लहदि, केवडिकालद्विदीएहि कम्मेहि सम्मत्तं ण लहदि त्ति एसा पुच्छा । एदस्स पुच्छासुत्तस्स दवट्ठियणयमवलंबिय अवट्ठाणादो संगहिदासेसपयदत्थस्स वक्खाणे कीरमाणे तत्थ जंण लहदि त्ति पदं तस्स विहासा कीरदे । तासिं ठिदीणं परूवणं कुणतो उक्कस्सठिदिवण्णणट्ठमुत्तरसुत्त भणदि
एत्तो उक्कस्सयट्टिदि वण्णइस्सामो ॥२॥
किमट्ठमेत्थ द्विदिपरूवणा कीरदे ? ण, अणवगदाए कम्मद्विदीए संगहिदासेसद्विदिविसेसाए एसा द्विदी सम्मत्तग्गहणजोग्गा एसा वि ण जोग्गा त्ति परूवणाए उवायाभावा, उक्कस्तहिदि बंधंतो पढमसम्मत्तं ण पडिवज्जदि त्ति जाणावणडं वा
'कितने काल-स्थितिवाले कर्मोंके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त करता है, अथवा नहीं प्राप्त करता है,' इस वाक्यके अन्तर्गत 'अथवा नहीं प्राप्त करता है' इस पदकी व्याख्या करते हैं ॥१॥
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं-- कितने कालस्थितिवाले कर्मोंके होते हुए जीव सम्यक्त्वको प्राप्त करता है, और कितने कालस्थितिवाले कर्मोंके होते हुए सम्यक्त्वको नहीं प्राप्त करता है, यह एक प्रश्न है। इस पृच्छासूत्रके द्रव्यार्थिकनयका अवलम्बन कर अवस्थान होनेसे संगृहीत समस्त प्रकृत अर्थका व्याख्यान किये जाने पर उसमें जो 'सम्यक्त्वको नहीं प्राप्त करता है' यह पद है, उसकी विभाषा की जाती है।
उन स्थितियोंका प्ररूपण करते हुए आचार्य कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिके वर्णनके लिए उत्तर सूत्र कहते हैं
अब इससे आगे उत्कृष्ट स्थितिको वर्णन करेंगे ॥२॥ शंका-यहांपर कर्मोकी स्थितिका निरूपण किसलिए किया जा रहा है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, समस्त स्थितिविशेषोंका संग्रह करनेवाली कर्मस्थितिके ज्ञात नहीं होनेपर, यह स्थिति सम्यक्त्वको ग्रहण करनेके योग्य है और यह स्थिति सम्यक्त्वको ग्रहण करनेके योग्य नहीं है, इस प्रकारकी प्ररूपणा करनेका और कोई उपाय न होनेसे; अथवा कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिको बांधनेवाला जीव प्रथमोपशमसम्यक्त्वको नहीं प्राप्त करता है, इस बातका ज्ञान करानेके लिए, कर्मोकी उत्कृष्ट
१ प्रतिषु 'पढमत्तण्ण ' इति पाठः ।
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