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________________ छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, ९-३, २. चदुरिंदिय-पज्जत्ताणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण असण्णिपंचिदिय-पज्जत्ताणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो' । तदो सागरोवमसदपुधत्त मोसरिदूण तिरिक्खगदि - (तिरिक्खगदि - ) पाओग्गाणुपुच्ची -उज्जोवाणं तिन्हं पयडीण मेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण णीचागोदस्स बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमो सरिदूण अप्पसत्थविहायगदि- दुभग दुस्सर - अणादेज्जाणं चदुण्हं पयडीणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण हुंडठाणअसंपत्तसेवट्टसरीरसंघडणाणं दोन्हं पयडीणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण वुंसयवेदबंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण वामणसंठाण - खीलियस रीरसंघडणाणं दोन्हं पयडीणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो' । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण खुज्जसं ठाण- अद्धणारायणसरीरसंघडणाणं दोन्हं पयडीणं एकसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण इत्थवेदबंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण सादियसंठाण-णारायणसरीरसंघडणाणं दोन्हं पयडीणमेक्कसराहेण १३८ ] प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर असंशी पंचेन्द्रियजाति और पर्याप्त, इन दोनों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर तिर्यग्गति, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और उद्योत, इन तीनों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर नीचगोत्रका बंध-व्युच्छेद होता है । उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और अनादेय, इन चारों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर हुंडसंस्थान और असंप्राप्तासृपाटिकाशरीरसंहनन, इन दोनों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर नपुंसकवेदका बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर वामनसंस्थान और कीलितशरीरसंहनन, इन दोनों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर कुब्जसंस्थान और अर्धनाराचशरीरसंहनन, इन दोनों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है । उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर स्त्रीवेदका बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतर कर स्वातिसंस्थान और नाराचशरीरसंहनन, इन दोनों प्रकृतियोंका १ अट्ठ अपुण्णपदेषु वि पुण्णेण जुदेसु तेसु तुरियपदे । एइंदिय आदावं धावरणामं च मिलिदव्वं ॥ लब्धि. १२. २ तिरिंगदुगुज्जोवो वि य णीचे अपसत्थगमणदुभगतिए । हुंडासंपत्ते वि य णओसए वामखीली ॥ लब्धि. १३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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