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________________ १, ९-३, २.] चूलियाए पढमो महादंडओ [१३७ मण्णोण्णसंजुत्ताणं दोहं पयडीणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण चदुरिंदिय-अपञ्जत्ताणमण्णोण्णसंजुत्ताणमेक्कसराहेण दोण्हं पयडीणं बंधवोच्छेदो। तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण • असण्णिपंचिंदिय-अपज्जताणमण्णोण्णसंजुत्ताणं दोण्हं पयडीणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदों । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण सण्णिपंचिंदियअपज्जत्ताणमण्णोण्णसंजुत्ताणं दोण्हं पयडीणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण सुहुम-पज्जत्त-साधारणाणमण्णोण्णसंजुत्ताणं तिण्हं पयडीणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो। तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण सुहुम-पज्जत्त-पत्तेयसरीराणमण्णोण्णसंजुत्ताणं तिण्हं पयडीणमेकसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्त. मोसरिदूण बादर-पज्जत्त साधारणसरीराणं तिण्हं पयडीणमेकसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीराणं एइंदिय-आदाव-थावराणं च एदासिं छण्हं पयडीणमण्णोण्णसंबद्धाणमेकसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण वेइंदिय-पज्जत्ताणमेकसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण तेइंदिय-पज्जत्ताणमेकसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण संयुक्त दोनों प्रकृतियोंका एक साथ बंध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर चतुरिन्द्रियजाति और अपर्याप्त, इन परस्पर संयुक्त दोनों प्रकृतियोंका एक साथ बंध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर असंही पंचेन्द्रियजाति और अपर्याप्त, इन परस्पर-संयुक्त दोनों प्रकृतियों का एक साथ बंध व्युच्छेद होता है । उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर संशी पंचेन्द्रियजाति और अपर्याप्त, इन परस्पर-संयुक्त दोनों प्रकृतियोंका एक साथ बंध व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर सूक्ष्म, पर्याप्त और साधारण, इन परस्परसंयुक्त तीनों प्रकृतियोंका एक साथ बंध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर सूक्ष्म, पर्याप्त और प्रत्येकशरीर, इन परस्पर-संयुक्त तीनों प्रकृतियोंका एक साथ बंध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर बादर, पर्याप्त और साधारणशरीर, इन तीनों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर बादर, पर्याप्त और प्रत्येकशरीर, तथा एकेन्द्रिय, आताप और स्थावर, इन एरस्पर-संबद्ध छहों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है । उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर द्वीन्द्रियजाति और पर्याप्त, इन दोनों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है । उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतर कर त्रीन्द्रियजाति और पर्याप्त, इन दोनों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर चतुरिन्द्रियजाति और पर्याप्त, इन दोनों ........................... ........ १ आऊ पडि णिरयदुगे सहुमतिये सुहुमदोण्णि पत्तेयं । बादरजुद दोण्णि पदे अपुण्णजुद वितिचसण्णिसण्णीसु ॥ लाब्ध. ११. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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