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१३६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ९-३, २. तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिद्ण तिरिक्खाउअस्स बंधवोच्छेदो। तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदण मणुसाउअस्स बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदण देवाउअस्स बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदण णिरयगदि-णिरयगदिपाओग्गाणुपुचीणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो होदि । तदो सागरोवमसदपुधत्तं हेट्ठा ओसरिदण सुहुमअपज्जत्त-साहारणसरीराणं अण्णोण्णसंजुत्ताणमेक्कसराहेण तिण्डं पयडीणं बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिद्ण सुहुम-अपज्जत्त-पत्तेयसरीराणं तिण्हमण्णोण्णसंजुत्ताणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण बादर-अपज्जत्त-साधारणसरीराणमण्णोण्णसंजुत्ताणं तिहं पयडीणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो । तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदूण बादर-अपज्जत्त-पत्तेयसरीराणं तिण्हमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो। तदो सागरोवमसदपुधत्तं ओसरिदण वेइंदिय-अपज्जत्ताणमण्णोण्णसंजुत्ताणं दोण्हं पयडीणमेक्कसराहेण बंधवोच्छेदो। तदो सागरोवमसदपुधत्तमोसरिदण तेइंदिय-अपज्जत्ताण
है। पुनः इसी क्रमसे आगे आगे स्थितिबंधका -हास करता हुआ एक सागरसे हीन, दो सागरसे हीन, तीन सागरसे हीन, इत्यादि क्रमसे सात आठ सौ सागरोपमोसे । हीन अन्तःकोड़ाकोड़ीप्रमाण स्थितिको जिस समय बांधने लगता है उस समय एक नारकायुप्रकृति बन्धसे व्युच्छिन्न होती है। नारकायुकी बंध-व्युच्छित्तिके पश्चात् तिर्यगायकी बन्ध-व्यच्छित्ति तक उपयुक्त क्रमसे ही स्थितिबंधका -हास होता है और जब वह हास सागरोपमशतपृथक्त्वप्रमित हो जाता है तब तिर्यगायुकी बन्ध-व्युच्छित्ति होती है। यही क्रम आगे भी जानना चाहिये । इस प्रकारसे स्थितिके -हास होनेको स्थितिबंधापसरण कहते हैं।
__ उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे अपसरणकर तिर्यगायुका बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर मनुष्यायुका बन्ध व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर देवायुका बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर नरकगति और नरकगत्यानुपूर्वी, इन दोनों प्रकृतियोंका एक साथ बंध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर परस्पर-संयुक्त सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीर, इन तीन प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे जाकर सूक्ष्म, अपर्याप्त और प्रत्येकशरीर, इन परस्पर-संयुक्त तीनों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर बादर, अपर्याप्त और साधारणशरीर, इन परस्पर-संयक्त तीनों प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध-व्यच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर बादर, अपर्याप्त और प्रत्येकशरीर, इन तीन प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध व्युच्छेद होता है । उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर द्वीन्द्रियजाति और अपर्याप्त, इन परस्पर-संयुक्त दोनों प्रकृतियोंका एक साथ बंध-व्युच्छेद होता है। उससे सागरोपमशतपृथक्त्व नीचे उतरकर त्रीन्द्रियजाति और अपर्याप्त, इन परस्पर
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