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१,९-२, ९२.] चूलियाए ढाणसमुक्त्तिणे णाम
[ १२१ आदेज-अणादेज्जाणमेक्कदरं जसकित्ति-अजसकित्तीणमेक्कदरं णिमिणणामं । एदासिं तदियएगूणतीसाए पगडीणमेक्कम्हि चेव हाणं ॥११॥
___ कम्हि अवट्ठाणं? एगूणतीसाए संखाए, एगूणतीसंपयडिबंधपाओग्गपरिणामे वा। भंगा छादालसयं अट्ठत्तरं ( ४६०८ ) । सेसं सुगमं ।
___ मणुसगदिं पंचिंदिय-पज्जत्तसंजुत्तं बंधमाणस्स तं मिच्छादिट्ठिस्स ॥ ९२॥
एदं पि सुगमं ।
तत्थ इमं पणुवीसाए ठाणं, मणुसगदी पंचिंदियजादी ओरालिय-तेजा-कम्मइयसरीरं हुंडसंठाणं ओरालियसरीरअंगोवंगं असंपत्तसेवट्टसंघडणं वण्ण-गंध-रस-फासं मणुसगदिपाओग्गाणुपुवी अगुरुअदुःस्वर इन दोनों से कोई एक", आदेय और अनादेय इन दोनों से कोई एक", यशःकीर्ति और अयश कीर्ति इन दोनोंमेंसे कोई एक" और निर्माणनामकर्म । इन तृतीय उनतीस प्रकृतियोंका एक ही भावमें अवस्थान है॥९१॥
शंका-उक्त बन्धस्थानका किसमें अवस्थान होता है ?
समाधान-उनतीसरूप संख्यामें, अथवा उनतीस प्रकृतियोंके बन्ध-योग्य परिणाममें अवस्थान होता है।
__ यहांपर छह संस्थान, छह संहनन, तथा विहायोगति आदि उक्त सात युगलोंके विकल्पसे (६x६x२x२x२x२x२x२x२४६०८) छयालीस सौ आठ भंग होते हैं। शेष सूत्रार्थ सुगम है।
__ वह तृतीय उनतीस प्रकृतिरूप बन्धस्थान पंचेन्द्रियजाति और पर्याप्त नामकर्मसे संयुक्त मनुष्यगतिको बांधनेवाले मिथ्यादृष्टि जीवके होता है ॥ ९२ ॥
यह सूत्र भी सुगम है।
नामकर्मके मनुष्यगतिसम्बन्धी उक्त तीन बन्धस्थानोंमें यह पच्चीस प्रकृतिरूप बन्धस्थान है- मनुष्यगति', पंचेन्द्रियजाति,', औदारिकशरीर', तैजसशरीर', कार्मणशरीर', हुंडसंस्थान, औदारिकशरीर-अंगोपांग', असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन', वर्ण, गन्ध, रस", स्पर्श", मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी', अगुरुलघु", उपघात", वस",
१ प्रतिषु ' तीससद ' इति पाठः ।
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