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छक्खंडागमै जीवट्ठाण [ १, ९-२, ८६. कधं बंधो ? ण, तेसिमुदयाणं व बंधाणं विरोहाभावा । दुभग-दुस्सर-अणादेजाणं धुवबंधित्तादो संकिलेसकाले वि बज्झमाणेण तित्थयरेण सह किण्ण बंधो ? ण, तेसिं बंधाणं तित्थयरबंधेण सम्मत्तेण य सह विरोधादो । संकिलेसकाले वि सुभग-सुस्सर-आदेज्जाणं चेव बंधुवलंभा । एत्थ भंगा अट्ठ (८)।
मणुसगदिं पंचिंदिय-तित्थयरसंजुत्तं बंधमाणस्स तं असंजदसम्मादिट्टिस्स ॥ ८६॥
सुगममेदं सामित्तमुत्तं ।
तत्थ इमं पढमएगणतीसाए टाणं। जधा, तीसाए भंगो। णवरि विसेसो तित्थयरं वज्ज । एदासिं पढमएगूणतीसाए पयडीणमेक्कम्हि चेव टाणं ॥ ८७ ॥
सुगममेदं । उसके साथ बन्ध कैसे संभव है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, उनके उदयके समान वन्धका कोई विरोध नहीं है।
शंका-संक्लेश-कालमें भी बंधनेवाले तीर्थकर नामकर्मके साथ ध्रुवबंधी होनेसे दुर्भग, दुःस्वर और अनादेय, इन प्रकृतियोंका बन्ध क्यों नहीं होता है ? ।
समाधान -नहीं, क्योंकि, उन प्रकृतियोंके बन्धका तीर्थकर प्रकृतिके बंधके साथ और सम्यग्दर्शनके साथ विरोध है । संक्लेश-कालमें भी सुभग, सुस्वर और आदेय प्रकृतियोंका ही वन्ध पाया जाता है ।
यहांपर स्थिर, शुभ और यश कीर्ति, इन तीन युगलोंके विकल्पसे (२४२४२=८) आठ भंग होते हैं।
वह तीस प्रकृतिरूप बन्धस्थान पंचेन्द्रियजाति और तीर्थकरप्रकृतिसे संयुक्त मनुष्यगतिको बांधनेवाले असंयतसम्यग्दृष्टिके होता है ॥ ८६ ॥
यह स्वामित्वसम्बन्धी सूत्र सुगम है।
नामकर्मके मनुष्यगतिसम्बन्धी उक्त तीन बन्धस्थानोंमें यह प्रथम उनतीस प्रकृतिसम्बन्धी बन्धस्थान है। वह किस प्रकार है ? वह तीस प्रकृतिसम्बन्धी बन्धस्थानके समान प्रकृति-भंगवाला है। विशेषता यह है कि यहां तीर्थकरप्रकृतिको छोड़ देना चाहिए । इन प्रथम उनतीस प्रकृतियोंका एक ही भावमें अवस्थान है ॥ ८७ ॥
यह सूत्र सुगम है।
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