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११२ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-२, ७६. सुगममेदं ।
तत्थ इमं छब्बीसाए ठाणं, तिरिक्खगदी एइंदियजादी ओरालिय तेया-कम्मइयसरीरं हुंडसंठाणं वण्ण-गंध-रस-फासं तिरिक्खगदिपाओग्गाणुपुवी अगुरुअलहुअ-उवघाद-परघाद-उस्सासं आदावुज्जोवाणमेक्कदरं ( थावर-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीरं थिराथिराणमेक्कदरं) सुहासुहाणमेक्कदरं दुहव-अणादेज्ज जसकित्ति-अजसकित्तीणमेक्कदरं णिमिणणामं । एदासि छव्वीसाए पयडीणमेक्कम्हि चेव ठाणं ॥७६॥
एइंदियाणमंगोवंग किण्ण परूविदं ? ण, तेसिं णलय बाहू-णिदंब-पट्ठि-सीसो. राणमभावादो तदभावा । एइंदियाणं छ संठाणाणि किण्ण परूविदाणि ? ण, पञ्चवयवपरूविदलक्खणपंचसंठाणाणं समूहसरूवाण छसंठाणत्थित्तविरोहा । भगा सोलस (१६)।
यह सूत्र सुगम है।
नामकर्मके तिर्यग्गतिसम्बन्धी उक्त पांच बन्धस्थानोंमें यह छब्बीस प्रकृतिसम्बन्धी बन्धस्थान है- तिर्यग्गति', एकेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर', तैजसशरीर', कार्मणशरीर', हुंडसंस्थान, वर्ण, गन्ध', रस, स्पर्श, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी", अगुरुलघु", उपघात", परघात", उच्छास", आतप और उद्योत इन दोनोंमेंसे कोई एक", स्थावर', बादर", पर्याप्त", प्रत्येकशरीर", स्थिर और अस्थिर इन दोनोंमेंसे कोई एक, शुभ और अशुभ इन दोनों में से कोई एक, दुर्भग, अनादेय", यशःकीर्ति
और अयशःकीर्ति इन दोनोंमेंसे कोई एक", तथा निर्माण नामकमे । इन छव्वीस प्रकृतियोंका एक ही भावमें अवस्थान है ।। ७६ ॥ - शंका-एकेन्द्रिय जीवोंके अंगोपांग क्यों नहीं बतलाये ?
समाधान नहीं, क्योंकि, उनके पैर, हाथ, नितम्ब, पाठ, शिर और उर (हृदय) का अभाव होनेसे अंगोपांग नहीं होते हैं।
शंका-एकेन्द्रियोंके छहों संस्थान क्यों नहीं बतलाए ?
समाधान नहीं, क्योंकि, प्रत्येक अवयवमें प्ररूपित लक्षणवाले पांच संस्थानोंको समूहस्वरूपसे धारण करनेवाले एकेन्द्रियोंके पृथक् पृथक् छह संस्थानोंके अस्तित्वका विरोध है।
__ यहां पर आतप, स्थिर, शुभ और यश-कीर्ति, इन चार युगलोंके विकल्पसे (२x२x२x२=१६) सोलह भंग होते हैं।
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