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१, ९-२, ६७.] चूलियाए ढाणसमुक्त्तिणे णाम
[ १०७ संघडणाणमभावेण । तीसाहारं पडि ण भेद इदि चे ण, छस्संट्ठाण-संघडणपडिबद्धतीसठाणादो पंचसठाण-संघडणपडिबद्धतीसट्ठाणस्स एयत्तविरोहा । सेस सुगमं ।।
तिरिक्खगदिं पंचिंदिय-पज्जत्त-उज्जोवसंजुत्तं बंधमाणस्स तं सासणसम्मादिट्ठिस्स ॥ ६७॥
अंतिमसंट्ठाण संघडणाणि सासणस्स किण्ण बंधमागच्छंति ? ण, तत्थ जोग्गतिव्यसंकिलेसाभावा । सेसं सुगमं । एत्थ भंगपमाणं ३२००।
तत्थ इमं तदियतीसाए ठाणं, तिरिक्खगदी वीइंदिय-तीइंदियचउरिंदिय तिण्हं जादीणमेक्कदरं ओरालिय-तेया-कम्मइयसरीरं हुंडप्रकृतियोंके अभावकी अपेक्षा पूर्वोक्त वन्धस्थानसे इस बन्धस्थानका भेद है।
शंका--'तीस' इस संख्यारूप आधारकी अपेक्षा तो कोई भेद नहीं है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, छह संस्थानों और छह संहननोंसे प्रतिबद्ध तीस प्रकृतिरूप बन्धस्थानसे, अर्थात् उसकी अपेक्षा, अथवा उसके साथ पांच संस्थानों और पांच संहननोंसे प्रतिवद्ध तीस प्रकृतिरूप बन्धस्थानके एकत्वका विरोध है । अर्थात् प्रकृतियोंकी संख्या दोनों स्थानों में तीस ही होनेपर भी उक्त प्रकार विभिन्न प्रकृतियोंवाले दो बन्धस्थान एक नहीं हो सकते हैं।
शेष सूत्रार्थ सुगम है।
वह द्वितीय तीस प्रकृतिरूप बन्धस्थान पंचेन्द्रियजाति, पर्याप्त और उद्योत नामकर्मसे संयुक्त तिर्यग्गतिको बांधनेवाले सासादनसम्यग्दृष्टिके होता है ॥ ६७ ॥ _ शंका - अन्तिम संस्थान अर्थात् हुंडसंस्थान और अन्तिम संहनन अर्थात् असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन सासादनसम्यग्दृष्टिके क्यों नहीं बन्धको प्राप्त होते हैं ?
___ समाधान-नहीं, क्योंकि, वहांपर, अर्थात् दूसरे गुणस्थानमें, उन दोनों प्रकृतियोंके बन्ध-योग्य तीव्र संक्लेश नहीं होता है।
शेष सूत्रार्थ सुगम है। यहांपर पांच संस्थान, पांच संहनन, तथा उक्त विहायोगति आदि सात युगलोंके विकल्पसे ५४५४२४२४२४२४२४२४२=३२०० बत्तीस सौ भंग होते हैं।
नामकर्मके तिर्यग्गतिसम्बन्धी उक्त पांच बन्धस्थानोंमें यह तृतीय तीस प्रकृतिरूप बन्धस्थान है-तिर्यग्गति', द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, और चतुरिन्द्रियजाति इन तीन जातियोंमेंसे कोई एक', औदारिकशरीर', तैजसशरीर', कार्मणशरीर',
१ विदिये बत्तीससयभंगा ॥ गो. क. ५३६.
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