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८४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-२.१०. तं मिच्छादिट्ठिस्स वा सासणसम्मादिहिस्स वा ॥ १०॥
एक्कस्स हाणस्स णवपयडिणिप्पण्णस्स एदे सामिणो होति । किमटुं सामित्तं उच्चदे ? ण, सम्मत्ताभावं पडि एयत्तं पडिवण्णट्ठाणम्हि समुप्पण्णएगेयंतबुद्धिमोसारिय अणेयत्तबुद्धिसमुप्पायणद्वत्तादो ।
तत्थ इमं छण्हं हाणं, णिहाणिदा-पयलापयला-थीणगिद्धीओ वज णिद्दा य पयला य चक्खुदंसणावरणीयं अचक्खुदंसणावरणीयं ओहिदंसणावरणीयं केवलदसणावरणीयं चेदि ॥ ११ ॥
णिपाणिद्दा-पयलापयला-थीणगिद्धीओ वज्ज छण्हं द्वाणं होदि त्ति उत्ते सेसपयडीओ इमाओ होति त्ति णचदे, तदो तासिं णिद्देसो अणत्थओ ति ? ण एस दोसो, अइजडसिस्ससंभालणद्वत्तादो ।
___ वह नौ प्रकृतिरूप प्रथम बन्धस्थान मिथ्यादृष्टिके और सासादनसम्यग्दृष्टिके होता है ॥ १० ॥
नौ प्रकृतियोंसे निष्पन्न होनेवाले एक, अर्थात् प्रथम, बन्धस्थानके मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि, ये दोनों स्वामी होते हैं।
शंका-यहां स्वामित्व किसलिए कहा जा रहा है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, सम्यक्त्वके अभावकी अपेक्षा एकत्वको प्राप्त स्थानमें उत्पन्न होनेवाली एक स्वामिस्वरूप एकान्तबुद्धिको दूर करके 'उसके स्वामी अनेक हैं' इस प्रकारकी अनेकत्वस्वरूप वुद्धिको उत्पन्न करानेके लिए यहां स्वामित्वका कथन किया जा रहा है।
दर्शनावरणीय कर्मके उक्त तीन बन्धस्थानोंमें निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धिको छोड़कर निद्रा और प्रचला, तथा चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय, और केवलदर्शनावरणीय, इन छह प्रकृतियोंका समुदायात्मक दूसरा बन्धस्थान है ॥ ११ ॥
__ शंका-निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि, इन तीनको छोड़कर शेष छह प्रकृतियोंका दूसरा स्थान होता है, ऐसा सूत्र कहनेपर शेष प्रकृतियां ये होती है, यह जाना जाता है, अतएव उन प्रकृतियोंका नाम निर्देश करना अनर्थक है ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, अति जड़वुद्धि शिप्योंको सम्हालनेके लिए सूत्रमें उन प्रकृतियोंका नाम निर्देश किया गया है ।
१णव सासणो ति । गो. क. ४६०
२ प्रतिषु सम्मत्ताभावपयडि ' इति पाठः।
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