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________________ ८० ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, ९-२, ३. तं मिच्छादिहिस्स वा सासणसम्मादिहिस्स वा सम्मामिच्छादिट्ठिस्स वा असंजदसम्मादिहिस्स वा संजदासंजदस्स वा संजदस्स वा ॥३॥ तं पयडिट्ठाणं मिच्छादिहिस्स वा सासणसम्मादिहिस्स वा सम्मामिच्छादिहिस्स वा असंजदसम्मादिट्ठिस्स वा संजदासंजदस्स वा संजदस्स वा होदि, एदेहितो वदिरित्तबंधगाणमभावा । एत्थ पढमाए अत्थे छट्ठी दडव्या, तेण मिच्छादिडिट्ठाणमिदि संबंधेदव्वं । कधं तस्स द्वाणववएसो ? तिष्ठन्त्यस्मिन् बंधहेतुप्रकृतय इति स्थानशब्दस्य व्युत्पत्तेः। संजदस्सेत्ति वुत्ते अट्ठ वि संजदगुणट्ठाणाणि घेत्तवाणि, संजदभावं पडि भेदाभावा । णवमं गुणट्ठाणं ( ण ) घेप्पदि, तस्स बंधगत्ताभावा । ____णाणावरणीयस्स कम्मस्स पंच पयडीओ, आभिणिबोधियणाणावरणीयं सुदणाणावरणीयं ओधिणाणावरणीयं मणपज्जवणाणावरणीयं केवलणाणावरणीयं चेदि ॥ ४ ॥ वह स्थान मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत और संयतसम्बन्धी है ॥ ३ ॥ __यह स्थान अर्थात् प्रकृतिस्थान, मिथ्यादृष्टिके, अथवा सासादनसम्यग्दृष्टिके, अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टिके, अथवा असंयतसम्यग्दृष्टिके, अथवा संयतासंयतके, अथवा संयतके होता है; क्योंकि, इनसे अतिरिक्त अन्य बन्धकोंका अभाव है । यहां, अर्थात् मिथ्यादृष्टि आदि पदोंमें, प्रथमाके अर्थमें षष्ठी विभक्ति जानना चाहिए, अतएव मिथ्या. दृष्टिस्थान, सासादनसम्यग्दृष्टिस्थान, इत्यादि प्रकारसे सम्बन्ध करना चाहिए । शंका-मिथ्यादृष्टि आदि बन्धकोंके 'स्थान' यह नाम कैसे हुआ ? समाधान -'बन्धकी कारणभूत प्रकृतियां जिस बन्धक जीवमें रहती हैं ' इस प्रकार स्थान शब्दकी व्युत्पत्ति करनेसे मिथ्यादृष्टि आदि बन्धकोंके 'स्थान' यह नाम सार्थक हो जाता है। ___ 'संयतसम्बन्धी स्थान' ऐसा कहनेपर प्रमत्तसंयत आदि आठ ही संयत-गुणस्थानोंको ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि, संयतभावकी अपेक्षा उनमें कोई भेद नहीं है। यहां नवमां, अर्थात् अयोगिकेवली गुणस्थान, नहीं ग्रहण किया गया है, क्योंकि, उसके बन्धकपनेका अभाव है। ज्ञानावरणीय कर्मकी पांच प्रकृतियां हैं-आभिनिवोधिकज्ञानावरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय, मनःपर्ययज्ञानावरणीय और केवलज्ञानावरणीय ॥ ४ ॥ १.छतु सगविहमढविहं कम्म बंधति तितु य सत्तविहं । छविहमेकहाणे तिसु एकमबंधगो एकको ॥ गो. क. ४५२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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