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विदिया चूलिया एत्तो टाणसमुक्त्तिणं वण्णइस्सामा ॥ १ ॥
किं स्थानम् ? तिष्ठत्यस्यां संख्यायामस्मिन् वा अवस्थाविशेष प्रकृतयः इति स्थानम् । ठाणं ठिदी अवट्ठाणमिदि एयट्ठो । समुकित्तणं वण्णणं परूवणमिदि उत्तं होदि । ट्ठाणस्स समुक्कित्तणा ट्ठाणसमुक्कित्तणा, तं वण्णइस्सामो कस्सामो त्ति उत्तं होदि । ठाणसमुक्कित्तणा किमट्ठमागदा ? पुव्वं पयडिसमुक्कित्तणाए जाओ पयडीओ परूविदाओ तासिं बंधो किमक्कमेण होदि, किं कमेणेत्ति पुच्छिदे एवं होदि त्ति जाणावणटुं द्वाणसमुक्कित्तणा आगदा।
तं जहा ॥२॥
सा ठाणसमुक्कित्तणा कधं उच्चदि त्ति पुच्छिदे एवं उच्चदि ति जाणावेंतो ताव हाणाणं चेव सरूवसंखाणं परूवणमुत्तरसुत्तं भणदि
अब इससे आगे स्थानसमुत्कीतनका वर्णन करेंगे ॥ १॥ शंका- स्थान किसे कहते हैं ?
समाधान-जिस संख्यामें, अथवा जिस अवस्थाविशेषमें, प्रकृतियां ठहरती हैं, उसे 'स्थान' कहते हैं।
स्थान, स्थिति और अवस्थान, ये तीनों एकार्थक हैं। समुत्कीर्तन, वर्णन और प्ररूपण, इनका अर्थ एक ही कहा गया है। स्थानकी समुत्कीर्तनाको स्थानसमुत्कीर्तना कहते हैं। उसका वर्णन अर्थात् व्याख्यान करेंगे, यह अर्थ कहा गया है ।
शंका-यह स्थानसमुत्कीर्तना नामकी चूलिका किसलिए आई है ?
समाधान-पहले प्रकृतिसमुत्कीर्तना नामकी चूलिकामें जिन प्रकृतियोंका प्ररूपण कर आए हैं, उन प्रकृतियोंका बन्ध क्या एक साथ होता है, अथवा क्रमसे होता है, ऐसा पूछने पर ' इस प्रकार होता है' यह वात बतलानेके लिए यह स्थानसमुत्कीर्तना नामकी चूलिका आई है।
वह स्थानसमुत्कीर्तन किस प्रकार है ? ॥२॥
वह स्थानसमुत्कीर्तना किस प्रकार कही जाती है, ऐसा पूछनेपर 'इस प्रकार कही जाती है' यह बतलाते हए आचार्य पहले स्थानोंके ही स्वरूप-संख्यानका करनेके लिए उत्तर-सूत्र कहते हैं
१ किं स्थानम् ? एकस्य जीवस्यैकस्मिन् समये संभवंतीनां समूहः । गो. क. जी. प्र. ४५१.
२ तकिमर्थमागतं ? पूर्व प्रकृतिसमुत्कीर्तने याः प्रकृतयः उक्तास्तासां बन्धः क्रमेणाक्रमेण वेति प्रश्ने एवं स्यादिति ज्ञापयितुं । गो. क. जी. प्र. ४५१
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