________________
१, ९-१, ४०.] चूलियाए पगडिसमुक्तित्तणे णाम-उत्तरपयडीओ
[७५ जस्स कम्मस्स उदएण सरीरपोग्गला सुअंधा होति तं सुरहिगंधं णाम । जस्स कम्मस्स उदएण सरीरपोग्गला दुग्गंधा होति तं दुरहिगंधं णाम ।
जं तं रसणामकम्मं तं पंचविहं, तित्तणामं कडवणामं कसायणामं अंबणामं महुरणामं चेदि ॥ ३९ ॥
जस्स कम्मस्स उदएण सरीरपोग्गला तित्तरसेण परिणमंति तं तित्तं णाम । एवं सेसरसाणमत्थो वत्तव्यो।
जं तं पासणामकम्मं तं अट्टविहं, कक्खडणामं मउवणामं गुरुअणामं लहुअणामं णिद्धणामं लुक्खणामं सीदणामं उसुणणामं चेदि ॥ ४० ॥)
जस्स कम्मस्स उदएण सरीरपोग्गलाणं कक्खडभावो होदि तं कक्खडं णाम । । एवं सेसफासाणं पि अत्थो वत्तव्यो ।)
जिस कर्मके उदयसे शरीरसम्बन्धी पुद्गल सुगन्धित होते हैं, वह सुरभिगन्ध नामकर्म है । जिस कर्मके उदयसे शरीरसम्बन्धी पुद्गल दुर्गन्धित होते हैं, वह दुरभिगन्ध नामकर्म है ।
जो रसनामकर्म है वह पांच प्रकारका है-तिक्तनांमकर्म, कटुकनामकर्म, कषायनामकर्म, आम्लनामकर्म और मधुरनामकर्म ॥ ३९ ।।
जिस कर्मके उदयसे शरीरसम्बन्धी पुद्गल तिक्तरससे परिणत होते हैं, वह तिक्तनामकर्म है । इसी प्रकार शेप रसनामकर्मीका अर्थ कहना चाहिए ।
जो स्पर्शनामकर्म है वह आठ प्रकारका है-कर्कशनामकर्म, मृदुकनामकर्म, गुरुकनामकर्म लघुकनामकर्म, स्निग्धनामकर्म, रूक्षनामकर्म, शीतनामकर्म और उष्णनामकर्म ॥ ४० ॥
जिस कर्मके उदयसे शरीरसम्बन्धी पुद्गलोंके कर्कशता होती है, वह कर्कशनामकर्म है । इसी प्रकार शेष स्पर्शनामकर्मीका अर्थ कहना चाहिए ।
१ तत्पंचविध-- तिक्तनाम कटु कनाम कषायनाम आम्लनाम मधुरनाम चेति । स. सि.; त. रा. वा. ८, ११.
२तदष्ट विध- कर्कशनाम मृदुनाम गुरुनाम लघुनाम स्निग्धनाम रूक्षनाम शीतनाम उष्णनाम चेति । स. सि.; त. रा. वा. ८, ११.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org