________________
७६]
छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-१, ४१. जंतं आणुपुव्वीणामकम्मं तं चउब्विहं, णिरयगदिपाओग्गाणुपुवीणामं तिरिक्खगदिपाओग्गाणुपुवीणामं मणुसगदिपाओग्गाणुपुब्बीणामं देवगदिपाओग्गाणुपुब्बीणामं चेदि ॥ ४१॥
__जस्स कम्मस्स उदएण णिरयगई गयस्स जीवस्स विग्गहगईए वट्टमाणयस्स णिरयगइपाओग्गसंठाणं होदि तं णिरयगइपाओग्गाणुपुवीणामं । एवं सेसआणुपुवीणं पि अत्थो वत्तव्यो।
अगुरुअलहुअणामं उवघादणामं परधादणामं उस्सासणामं आदावणामं उज्जोवणामं ॥ ४२ ॥
एदासमेत्थ णिदेसो किमहो ? णामस्स कम्मस्स वादालीसं पिंडपगडीओ त्ति णिद्देसो पाधण्णपदत्थो त्ति जाणावणट्ठो । कुदो ? एदासि पिंडपयडित्ताभावा ।।
जं तं विहायगइणामकम्मं तं दुविहं, पसत्थविहायोगदी अप्पसत्थविहायोगदी चेदि ॥४३॥
जो आनुपूर्वी नामकर्म है वह चार प्रकारका है-नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म, तिर्यग्गतिप्रायाग्योनुपूर्वी नामकर्म, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म और देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म ॥ ४१॥
जिस कर्मके उदयसे नरकगतिको गये हुए और विग्रहगतिमें वर्तमान जीवके नरकगतिके योग्य संस्थान होता है, वह नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म है। इसी प्रकार शेष आनुपूर्वी नामकौका भी अर्थ कहना चाहिए।
__ अगुरुलघु नामकर्म, उपघात नामकर्म, परघात नामकमे, उच्छास नामकम, आताप नामकर्म और उद्योत नामकर्म ॥ ४२ ॥
शंका -यहांपर इन प्रकृतियोंका निर्देश किसलिए किया है ?
समाधान - 'नामकर्मकी ब्यालीस पिंडप्रकृतियां हैं ' यह निर्देश प्राधान्यपदकी अपेक्षा है, इस बातके बतलाने के लिए यहांपर उक्त प्रकृतियोंका निर्देश किया गया है, क्योंकि, सूत्र में बतलाई गई इन प्रकृतियोंके पिंडप्रकृतिताका अभाव है । अर्थात् ये प्रकृतियां भेद-रहित हैं।
जो विहायोगति नामकर्म है वह दो प्रकारका है--प्रशस्तविहायोगति और अप्रशस्तविहायोगति ॥ ४३ ॥
१ यदा छिनायुर्मनुष्यस्तिर्यग्वा पूर्वेण शरीरेण वियुज्यते तदैव नरकभवं प्रत्यभिमुखस्य तस्य पूर्वशरीरसंस्थानानिवृत्तिकारणं विग्रहगतावदेति तन्नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम । त. रा. वा. ८, ११.
२ तद्विविध-प्रशस्ताप्रशस्तभेदात् । स. सि.; त. रा. वा. ८, ११.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org