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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ९-१, ३१.
सालि-वीहि-जब-गोहूमादिजादीणं भेदाणुववत्ती दो जस्स कम्मस्स उदएण जीवाणं बीइंदियत्तणेण समागतं होदि तं कम्मं बीइंदियणामं । तं पि अणेयपयारं, अण्णहा संखमाउवाहय-खुल्ल-बराडयारिट्ठ- सुत्ति - गंडवाला - कुक्खिकिमियादिजादीणं' भेदाणुववत्ती दो 'जस्स कम्मस्स उदएण जीवाणं तीइंदियभावेण समाणत्तं होदि तं तीइंदियजादिणामकम्मे । तैं च अणेयपयारं, अण्णहा कुंथु-मक्कुण - जूअ - विच्छिय- गोहिदगोव-पिपीलियादिजादिभेदाववत्तदो । जस्स कम्मस्स उदएण जीवाणं चउरिंदियभावेण समागतं होदितं कम्मं चउरिंदियजादिणामं । तं च अणेयपयारं, अण्णहा भमर - महुवर- सलहय-पयंगदंसमसय-मच्छियादिजादिभेदाणुववत्तदो । जस्स कम्मस्स उदएण जीवाणं पंचिदियजादिभावेण समाणत्तं होदि तं पंचिदियजादिणामकम्मं । तं चाणेयपयारं, अण्णहा मणुस - देव- रइय-सीह-हय-हत्थि-वय-वग्घ छवल्लादिजादिभेदाणुववत्तदो ।
जं तं सरीरणामकम्मं तं पंचविहं. ओरालियसरीरणामं वेड - व्वियसरीरणामं आहारसरीरणामं तेयासरीरणामं कम्मइयसरीरणामं चेदि ॥ ३१ ॥
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कदम्ब, इमली, शालि, धान्य, जौ, और गेहूं आदि जातियोंका भेद नहीं हो सकता है । जिस कर्मके उदयसे जीवोंकी द्वीन्द्रियत्वकी अपेक्षा समानता होती है वह द्वीन्द्रियजातिनामकर्म कहलाता है । वह भी अनेक प्रकारका है, अन्यथा शंख, मातृवाह, क्षुल्लक, वराटक ( कौंडी ), अरिष्ट, शुक्ति, ( सीप), गंडोला और कुक्षि-कृमि ( पेटमें उत्पन्न होनेवाला कीड़ा ) आदि जातियोंका भेद नहीं बन सकता है । जिस कर्मके उदयसे जीवोंकी त्रीन्द्रियभावकी अपेक्षा समानता होती है, वह त्रीन्द्रियजातिनामकर्म है । वह भी अनेक प्रकारका है, अन्यथा, कुंथु, मत्कुण ( खटमल) जूं, विच्छू, गोम्ही, इन्द्रगोप, और पिपीलिका (चींटी) आदि जातियोंका भेद हो नहीं सकता है। जिस कर्मके उदयसे जीवोंकी चतुरिन्द्रियभावकी अपेक्षा समानता होती है वह चतुरिन्द्रियजातिनामकर्म है । वह कर्म अनेक प्रकारका है, अन्यथा भ्रमर, मधुकर, शलभ, पतंग, देशमशक और मक्खी आदि जातियोंका भेद नहीं हो सकता है। जिस कर्मके उदयसे जीवोंकी पंचेन्द्रियजातित्व के साथ समानता होती है, वह पंचेन्द्रियजातिनामकर्म है । वह कर्म अनेक प्रकारका है, अन्यथा, मनुष्य, देव, नारकी, सिंह, अश्व, हस्ती, वृक, व्याघ्र और चीता आदि जातियोंका भेद बन नहीं सकता है ।
जो शरीरनामकर्म है वह पांच प्रकारका है - औदारिकशरीरनामकर्म, वैक्रियिकशरीरनामकर्म, आहारकशरीरनामकर्म, तैजसशरीरनामकर्म और कार्मणशरीरनामकर्म ॥ ३१ ॥
१ सत्प्ररूप भाग १ ) पृ. २४१. २ सत्प्ररूप- (भाग १) पृ. २४३. ३ सत्प्ररूप- (भाग १) पृ. २४५.
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