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१, ९-१, २८.] जूलियाए पगडिसमुक्तित्तणे णाम-उत्तरपयडीओ (५१
जातिर्जीवानां सदृशपरिणामः' । यदि जातिनामकर्म न स्यात् मत्कुणा मत्कुणैः, वृश्चिका वृश्चिकैः, पिपीलिकाः पिपीलिकाभिः, ब्रीहयो ब्रीहिभिः, शालयः शालिभिः समाना न जायेरन् । दृश्यते च सादृश्यम् । तदो जत्तो कम्मक्खंधादो जीवाणं भूओ सरिसत्तमुप्पज्जदे, सो कम्मक्खंधो कारणे कज्जुबयारादो जादि त्ति भण्णदे । जदि पारिणामिओ सरिसपरिणामो णस्थि तो सरिसपरिणामकज्जण्णहाणुववत्तीदो तक्कारणकम्मस्स अत्थित्तं सिज्झेज्ज । किंतु गंगावालुवादिसु पारिणामिओ सरिसपरिणामो उवलब्भदे, तदो अणेयंतियादो सरिसपरिणामो अप्पणो कारणीभूदकम्मरस अत्थित्तं ण साहेदि ति ? ण एस दोसो, गंगवालुआणं पुढविकाइयणामकम्मोदएण सरिसपरिणामत्तब्भुवगमादो। परमाणुसु सरिसपरिणामो पारिणामिओ उपलब्भदि, तदो हेऊ अणेयंतिओ त्ति ण सक्किज्जदे वोत्तुं, साहणदोसेसु अणेयंतियस्स अभावा । अण्णहाणुववत्तिविरहेण साहणस्स ओक्खत्तं जायदे, ण अण्णहा, अव्यवस्थादो । ण च एत्थ अण्णहाणुववत्ती पत्थि, उवलंभादो । किं च जदि जीवपडिग्गहिदपोग्गलक्खंधसरिसपरिणामो
जीवोंके सदृश परिणामको जाति कहते हैं। यदि जातिनामकर्म न हो, तो खटमल खटमलोंके साथ, बिच्छ बिच्छुओके साथ, चींटियां चीटियोंके साथ, धान्य धान्यके साथ और शालि शालिके साथ समान न होगी किन्तु इन सबमें परस्पर सदृशता दिखाई देती है । इसलिये जिस कर्म-स्कन्धसे जीवोंके अत्यन्त सदृशता उत्पन्न होती है वह कर्म-स्कन्ध कारणमें कार्यके उपचारसे 'जाति' इस नामवाला कहलाता है।
शंका-यदि पारिणामिक सदृश परिणाम नहीं है, तो सदृश परिणामरूप कार्य उत्पन्न हो नहीं सकता, इस अन्यथानुपपत्तिसे उसके कारणभूत कर्मका अस्तित्व भले ही सिद्ध होवे। किन्तु गंगा नदीकी वालुका आदिमें पारिणामिक सदृश परिणाम पाया जाता है, इसलिये हेतुके अनैकान्तिक होनेसे सदृश परिणाम अपने कारणीभूत कर्मके अस्तित्वको नहीं सिद्ध करता है ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, गंगानदीकी वालुकाके पृथिवीकायिक नामकर्मके उदयसे सदृश-परिणामता मानी गई है । परमाणुओंमें सदृश परिणाम स्वाभाविक पाया जाता है, इसलिये उपर्युक्त हेतु अनैकान्तिक है, ऐसा भी नहीं कह सकते, क्योंकि, हेतु सम्बन्धी दोषोंमें अनैकान्तिक नामके दोषका अभाव है । अन्यथानुपपत्तिके अभावसे साधनके अवक्षिप्तता प्राप्त होती है, अन्य प्रकारसे नहीं; क्योंकि, अन्य प्रकारसे माननेपर अव्यवस्था उत्पन्न होती है । यहां पर अन्यथानुपपत्ति न हो, यह बात नहीं है, क्योंकि, यहां वह पाई जाती है। दूसरी बात यह है, कि यदि जीवके
१ तासु नरकादिगतिप्वव्यभिचारिणा सादृश्येनैकीकृतोऽर्थात्मा जातिः । स. सि.; त. रा. वा., त. श्लो. वा. ८, ११.
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