________________
१८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ९-१, २५. कज्जुवयारादो । जुगुप्सनं जुगुप्सा । जेसि क्रम्माणमुदएण दुगुंछा उप्पज्जदि तेसिं दुगुंछा इदि सण्णा'। एदेसि कम्माणमत्थित्तं कुदो णव्वदे ? पच्चक्खेणुवलंभमाणअण्णाणादसणादिकज्जण्णहाणुववत्तीदो ।
आउगस्स कम्मस्स चत्तारि पयडीओ ॥२५॥
एदं दवट्ठियणयसुत्तं, संगहिदासेसविसेसत्तादो। कधमेदम्हादो सव्वत्थावगई ? एदमाधारभूदं काऊण एदस्स सयलत्थपदुप्पादयआइरियादो' । पज्जवट्ठियणयजणाणुग्गहट्टमुत्तरसुत्तं भणदि
णिरयाऊ तिरिक्खाऊ मणुस्साऊ देवाऊ चेदि ॥२६॥
जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएण जीवस्स उद्धगमणसहावस्स णेरइयभवम्मि अवट्ठाणं होदि तेसिं णिरयाउवमिदि सण्णा' । जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएण तिरिक्खभवस्स अवठ्ठाणं यह संज्ञा है। ग्लानि होनेको जुगुप्सा कहते हैं। जिन कर्मोंके उदयसे ग्लानि उत्पन्न होती है उनकी 'जुगुप्सा' यह संशा है ।
शंका-इन कौका अस्तित्व कैसे जाना जाता है ?
समाधान-प्रत्यक्षके द्वारा पाये जानेवाले अज्ञान, अदर्शन आदि कार्योंकी उत्पत्ति अन्यथा हो नहीं सकती है, इस अन्यथानुपपत्तिसे उक्त कर्मोका अस्तित्व जाना जाता है। ___ आयुकर्मकी चार प्रकृतियां हैं ॥ २५॥
यह संग्रहनयाश्रित सूत्र है, क्योंकि, अपने भीतर समस्त विशेषोंका संग्रह करनेवाला है।
शंका-इस सूत्रसे सम्पूर्ण अर्थोका शान कैसे होता है ?
समाधान- इस सूत्रको आधारभूत करके आगमानुकूल सभी अर्थोके प्रतिपादन करनेवाले आचार्य से सम्पूर्ण अर्थोका ज्ञान प्राप्त होता है।
अब पर्यायार्थिक नयवाले जीवोंका अनुग्रह करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं
नरकायु, तियेगायु, मनुष्यायु और देवायु, ये आयुकमेकी चार प्रकृतियां हैं ॥ २६ ॥.
जिन कर्म स्कन्धोंके उदयसे ऊर्ध्वगमन स्वभाववाले जीवका नारक-भवमें अवस्थान होता है, उन कर्म-स्कन्धोंकी नरकायु' यह संज्ञा है। जिन कर्म-स्कन्धोंके उदयसे तिर्यंच
१ यदुदयादात्मदोषसंवरणमन्यदोषस्याधारणं सा जुगुप्सा । स. सि.; त. रा. वा. ८, ९. २ त. सू. ८, ५. ३ प्रतिषु 'सयअत्थपदुप्पाइयआइरियादो' इति पाठः। ४ त. सू. ८, १०.
५ यद्भावाभावयोर्जीवितमरणं तदायुः । xxx नरकेषु तीव्रशीतोष्णवेदनेषु यन्निमित्तं दीर्घजीवनं तन्नारकायुः। त. रा. वा. त, श्लो. वा. ८, १०.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org