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________________ १, ९-१, २३.] चूलियाए पगडिसमुक्त्तिणे मोहणीय-उत्तरपयडीओ [४३ अण्णहाणुववत्तीदो सिद्धं दसणमोहणीयत्तं चरित्तमोहणीयत्तं च । ण चाणताणुबंधिचउकवाचारो चारित्ते णिप्फलो, अपञ्चक्खाणादिअणंतोदयपवाहकारणस्स णिप्फलत्तविरोहा । प्रत्याख्यानं संयमः, न प्रत्याख्यानमप्रत्याख्यानमिति देशसंयमः। पच्चक्खाणस्स अभावो असंजमो संजमासंजमो वि; तत्थ असंजमं मोत्तूण अपच्चक्खाणसद्दो संजमासंजमे चेव वदि ति कधं णव्वदे ? आवरणसद्दपओगादो। ण च कम्मेहि असंजमो आवरिज्जदि, चारित्तावरणस्स कम्मस्स अचारित्तावरणत्तप्पसंगादो । पारिसेसादो अपच्चक्खाणसद्दट्ठो संजमासंजमो चेय । अथवा नजीयमीषदर्थे वर्त्तते । तथा च न प्रत्याख्यानमित्यप्रत्याख्यानं संयमासंयम इति सिद्धम् । न च नञः ईषदर्थे वृत्तिरसिद्धा, न रक्ता न श्वेता युवतिनखाः ताम्राः कुरवका इत्यत्रान्यथा स्ववचनविरोधप्रसंगाद् , अनुदरी कुमारीत्यत्र उदराभावतः कुमार्योः मरणप्रसंगाच्च । अत्रोपयोगी श्लोकः इस अन्यथानुपपत्तिसे उनके दर्शनमोहनीयता और चारित्र-मोहनीयता, अर्थात् सम्यक्त्व और चारित्रको घात करनेकी शक्तिका होना, सिद्ध होता है । तथा, चारित्रमें अनन्तानुबन्धि-चतुष्कका व्यापार निष्फल भी नहीं है, क्योंकि, अप्रत्याख्यानादिके अनन्त उदयरूप प्रवाहके कारणभूत अनन्तानुवन्धी कषायके निष्फलत्वका विरोध है। प्रत्याख्यान संयमको कहते है । जो प्रत्याख्यानरूप नहीं है, वह अप्रत्याख्यान है। इस प्रकार 'अप्रत्याख्यान' यह शब्द देशसंयमका वाचक है। शंका-प्रत्याख्यानका अभाव असंयम है और संयमासंयम (देशसंयम) भी है। उनमें असंयमको छोड़कर अप्रत्याख्यान शब्द केवल संयमासंयमके अर्थमें ही रहता है, यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-आवरण शब्दके प्रयोगसे जाना जाता है कि अप्रत्याख्यान शब्द केवल संयमासंयमके अर्थमें रहता है। कर्मोंके द्वारा असंयमका आवरण तो किया नहीं जाता है, अन्यथा चारित्रावरण कर्मके अचारित्रावरणत्वका प्रसंग आजायगा। अतः पारिशेषन्यायसे अप्रत्याख्यान शब्दका अर्थ संयमासंयम ही है । अथवा नजन्य - पद ईषत् ( अल्प ) अर्थमें वर्तमान है। इसलिये जो प्रत्याख्यान नहीं वह अप्रत्याख्यान अर्थात् संयमासंयम है, यह बात सिद्ध हुई। नञ् पदकी ईषत् अर्थमें वृत्ति असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि, 'इस युवतिके नख न लाल है और न सफेद है, किन्तु, ताम्र-वर्णवाले करवकके समान हैं। इस प्रयोग में अन्यथा स्ववचन विरोधका प्रसंग प्राप्त होगा. तथा 'अनुदरी कुमारी' यहां पर उदरके अभावसे कुमारीके मरणका प्रसंग प्राप्त होगा। इस विषयमें यह उपयोगी श्लोक है १ प्रतिषु ' वृत्तेरसिद्धा' इति पाठः। २ प्रतिषु ' युवतिनखा तांत्रामरत्रकाः ' मप्रतो 'युवतिनखतांबांकुरखकाः ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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